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पहले मीठा बना कर खाना खिलाया, फिर कुदाल से पत्नी व बच्चों को मारा, 5 कत्ल इनसाइड स्टोरी

First made sweet and fed, then killed wife and children with spade, 5 murders inside story

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sucide person with family

Hisar News : रमेश ने अपने सुसाइड नोट में परिवार की हत्या की बात कबूल की है. सुसाइड नोट में रमेश ने एक-एक बात का जिक्र करते हुए लिखा कि ऐसा उसने क्यों किया. इसमें उसकी पत्नी भी साथ थी या नहीं, इन बातों का जिक्र किया है. सुसाइड नोट की एक कॉपी पुलिस ने बरामद कर ली है. रमेश के सुसाइड नोट से साफ है कि वह जिंदगी से निराश था. वह अपनी पत्नी के साथ भी मरने की बात किया करता था. रमेश की पत्नी सविता भी उसके साथ मरने की बात करती थी.

रमेश ने 11 नोट का सुसाइड लिखा जिसमें लिखा था. कि वह बहुत दुख दे रहा है लेकिन अपनी मासूम और भोली पत्नी सविता और नादान बच्चों को बेरहम दुनिया में अकेला नहीं छोड़ सकता. इसलिए इनको भी साथ लेकर जा रहा हूं, सब से माफी, बेशक कितना भी बुरा कहो, उससे ज्यादा बुरा बन कर जा रहा हूं. मैं सिर्फ आपका अपराधी हूं, पूरी दुनिया का नहीं. आज के दिन सभी को सुख में दुखी कर रहा हूं. अपना ख्याल रखना वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. संदीप से भी माफी, पिछले साल आपको बताया था लेकिन यह सब होना ही था. सिर्फ आपका अपराधी हूं और किसी का नहीं आपका रमेश मुझे मोक्ष शांति चाहिए थी.

दूसरा पेज मुझे अपराधी ना समझे

मृतक रमेश ने लिखा कि जो भी है सुसाइड नोट पढ़ रहा है. मुझे अपराधी ना समझे अभी रात के 11:00 बज चुके हैं, और मुझे ने दुख है, ना डर है और ना ही सर्दी लग रही है. पता ही नहीं चला कब 11:00 बज गए. 2 घंटे लगे सब करने में, सबको नींद की गोलियां खिलाई और जो भी किया, कोई ऐसा ना कोई घटना नहीं है ऐसा नहीं है ना कोई डर है, ना कर्ज है 50,000 तक कमा लेता हूं जिंदगी के सारे सपने पूरे कर चुका हूं.

बचपन से अलग रह रहा था शादी के बाद हो गई जिंदगी खराब

रमेश ने आगे लिखते हुए कहा कि मैं बचपन से ही अलग रहता था. और जब से होश संभाला था सारी सुखों की वजह दुनिया को अलग नजर से देखता था और दुनिया की असलियत को समझता, आखिर हम धरती पर क्यों आए हैं, क्या मकसद है, लोग किस चीज के लिए भाग रहे हैं, मगर काफी समय तक इसी सोच में रहा. कॉलेज में दर्शन पढ़ने के बाद मन दुनिया से अलग हो गया. सब चीज नकली लगने लगी, किसी भी वस्तु में आनंद नहीं रहा मगर दिमाग का एक हिस्सा सांसारिक चीजों और लोगों में था, इसी बीच पिता चल बसे बस यही है, और मेरी बर्बादी शुरू हुई.

मुझे मोक्ष मुक्ति चाहिए थी

मेरे ना चाहते हुए भी मेरी शादी हुई ताकि मां का ख्याल रखा जा सके. लेकिन इन सब ने मेरा जीवन खराब कर दिया. मेरा मन पिछले 15 साल से सन्यासी था. और मैं मोक्ष चाहता था, मगर गृहस्ती से निकल नहीं सका. मुझे हमेशा गलत समझा जाना धीरे धीरे मेरा दिमाग बदलता गया और मैं अंदर अंदर डरने लगा छोटे बच्चे मासूम बीवी को छोड़कर जाना ठीक नहीं था. आखिर अलग घर बनाकर रहने लगा. लेकिन जिंदगी यह कुछ भी सही नहीं रहा सब दूर होते गए. क्योंकि सब लालची थे मैं सांसारिक सुखों की बजाय शांत रहता, मगर गुस्सा काबू नहीं कर सका बस उम्र के साथ यह सब गलत हुआ.

मैं सांसारिक भागदौड़ में भागता रहता

न चाहकर भी रुपये धन कमाने की मशीन बना हुआ था और ज्यादा काम और ज्यादा रुपया, फिर काम मगर सन्यासी मन कहता बस अब और नहीं बस करो जिंदगी में कोई चाहत नहीं रही थी. कोई सपना नहीं था. भाई ने सब प्रापर्टी हड़प ली लेकिन मन में मेरी शांति थी कि कभी विरोध नहीं किया. मेरी सविता भी मेरी तरह ही बस जो है उसी में खुश थी. खैर हमने भाई को माफ कर दिया. मैं तो फकीरी में सन्यासी बनकर जी रहा था. दूसरों को देखकर ही खुश या गम नहीं था. खैर आखिर मैने ये सब क्यों किया.

कोई मुझे कायर, कातिल न कहे

कोई मुझे कायर, कातिल न कहे जो भी मेरी दौलत थी बीवी बच्चों के साथ ले गया हूं. बाकी सब सांसारिक चीजें यहीं हैं. धन से मन खुश नहीं होता पैसा तो चुनाव के समय खूब कमा लेता मगर मन तो फकीर हो चुका है.
सब मेरे लिए कचरे समान. सब मेरे लिए कचरे समान या बस जी नहीं सका यहीं सबको गलत लगेगा. मेरा जीवन तो खुद की तलाश में या हम क्यों हैं किस लिए हैं इतनी आकांशाओं में हम ही क्यों हैं, सब एक जैसा जीवन ही क्यों जी रहे हैं. आखिर धन, दौलत, जमीन यहीं सब सबका मकसद क्यों हैं,

आखिरी इच्छा भी जाहिर की

पहली तो पूरी कर चुका हूं, सबको साथ ले जा रहा हूं.अस्पताल से सीधे श्मशान ले जाया जाएं. परिवार में कोई नहीं सन्यासी हो चुका हूं, अब पीछे कोई नहीं है रोने वाला. अस्थियां हरिद्वार की बजाय श्मशान के पेड़ पौधों में डाल दी जाएं. हमको इतनी शांति चाहिए.

मैं कोई मानसिक रोगी नहीं हूं बस शांति चाहता हूं

तीन बार बिजली के तार मुंह में लिए मगर करंट नहीं लग. अब याद आया मुझे तो कभी करंट लगता ही नहीं था. सड़क पर जा रहा हूं शरीर का बोझ खत्म करना है. रात के चार बज चुके हैं घर से निकल चुका हूं. इतनी सर्दी में सबको परेशान करके जा रहा हूं.

मैं मोक्ष मुक्ति चाहता था

न चाहते हुए शादी हुई ताकि मां भाई का ख्याल रहे. लेकिन इन्होंने मेरा जीवन अधिक खराब किया. मेरा मन पिछले 15 साल से सन्यासी था, मैं मोक्ष मुक्ति चाहता था. मगर गृहस्थी से निकल नहीं सका. मुझे हमेशा गलत समझा जाना, धीरे-धीरे मेरा दिमाग बदलता गया और मैं अंदर अंदर डरने लगा.

मन कहीं सन्यासी था तो रोज मैं सांसारिक भागदौड़ में भागता रहता

न चाहकर भी रुपये धन कमाने की मशीन बना हुआ था और ज्यादा काम और ज्यादा रुपया, फिर काम मगर सन्यासी मन कहता बस अब और नहीं बस करो जिंदगी में कोई चाहत नहीं रही थी. कोई सपना नहीं था. भाई ने सब प्रापर्टी हड़प ली लेकिन मन में मेरी शांति थी कि कभी विरोध नहीं किया.

यह भी सुसाइड नोट में लिखा

पिछले साल मैंने सबसे सन्यास मांगा मुझे मुक्ति दे दो. मगर सबने सांसारिक दुनिया का पाठ पढ़ाकर रोक लिया. मैं अक्सर बीवी के आगे रोता था. मुझे जाने दो मगर वो रोक लेती थी. गले में बहुत दिक्कत थी. सहन नहीं कर सका. लगातार बिगड़ते हालात और मासूम बीवी बच्चों को बेरहम दुनिया में अकेला भी नहीं छोड़ सकता था,