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Unemployment: देश में रोजगार के लिए आई बड़ी रिपोर्ट, लोगों को क्यू नहीं मिल रहा रोजगार

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आपको बता देते हैं की क्या देश में रोजगार के अवसर घटना ही बेरोजगारी का कारण है या इसके पीछे देश का एजुकेशन सिस्टम भी जिम्मेदार भी है. वैसे आपको बताते चलें कि भारत का एजुकेशन सेक्टर बूम कर भी रहा है और ये 117 अरब डॉलर तक हो भी चुका है.

THE CHOPAL - आपको बता दे की ‘हाय हाय ये मजबूरी… तेरी दो टकियां दी नौकरी’…जीनत अमान और मनोज कुमार का ये गाना लगभग 50 वर्ष पुरानी फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ का भी है। ये फिल्म इंसान की इन्हीं 3 जरूरत के इर्द-गिर्द बुनी गई थी, और इन्हें पूरा करता है रोजगार. तब ये गाना नौकरी होने के कारण से प्रेमी-प्रेमिका के संबंध में आ रही बाधा के लिए लिखा भी गया था। आपको बता दे की आज के दौर में हालत ये है कि ‘नौकरी’ पाना ही मुश्किल होता जा रहा है. लेकिन इसकी वजह क्या है?

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सरकार -

आपको बता देते हैं की क्या देश में रोजगार के अवसर घटना ही बेरोजगारी का कारण है या इसके पीछे देश का एजुकेशन सिस्टम भी जिम्मेदार भी है. वैसे आपको बताते चलें कि भारत का एजुकेशन सेक्टर बूम कर भी रहा है और ये 117 अरब डॉलर तक हो भी चुका है. वहीं देश में हर रोज जो नए कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह खड़े हो रहे हैं, क्या वह बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार हैं ? चलिए समझते हैं इस रिपोर्ट

रोजगार?

भारत में हर वर्ष ग्रेजुएट होने वाली जनसंख्या के आंकड़ों पर नजर डालें, तो इसमें एक बड़ा नंबर ऐसे लोगों का है जिनके पास ना तो स्किल है, ना समझ, फिर भी उनके पास डिग्री है. हालात ये हैं कि इस स्थिति से आगे बढ़ने की बजाय ये युवा नौकरी पाने के लिए कई बार दो या तीन डिग्री तक कर रहे हैं. वहीं इसके उलट आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से पढ़े भारतीय दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों को चला रहे हैं. फिर वह चाहे गूगल के सुंदर पिचाई हों या माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला.

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देश में प्राइवेट कॉलेज के हालात ये है कि इनमें से कई शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, अपार्टमेंट यहां तक कि घरों में भी चल रहे हैं. इतना ही नहीं देशभर के हाईवे पर आपको बड़े-बड़े बिलबोर्ड पर नौकरी का वादा करने वाले कॉलेजों के विज्ञापन भी मिल जाएंगे. पर इन कॉलेज में से अधिकतर में रेग्युलर क्लास नहीं होती है. बराबर संख्या में टीचर नहीं है और जो हैं उनके पास थोड़ी ही ट्रेनिंग है. इन कॉलेज में पुराने करिकुलम के हिसाब से पढ़ाई हो रही है. कोई प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस बच्चों को नहीं मिल रहा है. वहीं जॉब प्लेसमेंट को लेकर कोई पक्का भरोसा नहीं है.