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चने की खेती पर मिलता है बम्पर उत्पादन, बस बुवाई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

Gram Cultivation: दिसम्बर महीने तक तक चने की बुवाई का सही समय होता है। बुवाई में अधिक देर करने पर पैदावार कम होती है और फलीभेदक कीट का प्रकोप भी अधिक होता है। एक हेक्टेयर में चने की बुवाई करने पर कितना बीज लगेगा? 

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चने की खेती पर मिलता है बम्पर उत्पादन, बस बुवाई करते समय इन बातों का रखें ध्यान 

The Chopal, Gram Cultivation: दलहन फसलों में बहुत महत्वपूर्ण होने वाले चने की बुवाई का अब समय आ गया है। 30 अक्टूबर तक चने की बुवाई करने से बंपर पैदावार मिलेगी। भारत अभी भी दालों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, इसलिए इसकी खेती कृषकों के लिए लाभदायक हो सकती है। इसलिए इसके मूल्य में तेजी का अनुमान लगाया जाता है। यही नहीं, चने की फसल खेत के लिए खाद की एक "फैक्ट्री" भी है क्योंकि इसके पौधों की जड़ें वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन को जमीन में डाल देती हैं। फिर भी, अच्छी पैदावार के लिए लोगों को उर्वरक चाहिए।

सरकार, दूसरे शब्दों में चने का उत्पादन बढ़ाना चाहती है ताकि दालों पर विदेशी निर्भरता कम हो। सरकार ने हाल ही में 2025-26 के लिए चने की एमएसपी को 5650 रुपये करते हुए 210 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है। यही कारण है कि लोग इसकी खेती बढ़ाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। दलहन फसलों में चने की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह लगभग 45 प्रतिशत कुल उत्पादन में है। 

चलिए जानते है सही तरीका 

  • सामान्य परिस्थितियों में चने की अधिक उपज के लिए प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 45 किलोग्राम फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। 
  • चने की फसल में मट्टी के परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। फिर भी, प्रत्येक हेक्टेयर 20 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम गंधक का प्रयोग कर सकता है अगर अच्छी उपज की उम्मीद है
  • जिन क्षेत्रों में जस्ते और बोरॉन की कमी हो, अंतिम जुताई में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर, या सुहागा, प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
  • 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से देर से बोई गई चने की फसल को फायदा मिलता है। असिंचित अवस्था में फली बनते समय पत्तियों पर 2% यूरिया घोल छिड़काव करके उपज बढ़ा सकते हैं। 
  • चने की फसल जमीन में नाइट्रोजन फैलाता है। चने की फसल के बाद लगाई जाने वाली अन्य खाद्यान्न फसल में 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन उर्वरक का भी लाभ मिलता है।  
  • चने का क्रॉप डायवर्सिफिकेशन में महत्वपूर्ण योगदान है। इसकी खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और उसकी जैविक गुणवत्ता सुधरती है। 

बीज उपचार आवश्यक है

चने की बुवाई से पहले बीजों को कवकनाशी दवा जैसे बीटावैक्स 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम या थीरम या कैप्टॉन 2-5 ग्राम प्रति किलोग्राम देना चाहिए। 24 घंटे बाद, कटुआ, यानी कजरा पिल्लू कीट को बचाने के लिए 20 ईसी (8 मिली/किग्रा बीज) क्लोरपाइरीफॉस बीजोपचार करना चाहिए। 

2 घंटे छाया में सुखाने के बाद, कीटनाशी और कवक रसायन से उपचारित बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए। बीज उपचार में राइजेबियम कल्चर का 5 पैकेट प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (PSB) कल्चर से बीजोपचार करना राइजोबियम कल्चर की तरह ही अधिक लाभदायक होता है। विभिन्न परिस्थितियों के लिए उपयुक्त प्रजातियों का चयन कर बुवाई की जा सकती है। 

चने की बुवाई कब करें?

अक्टूबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक असिंचित क्षेत्रों में चने की बुवाई करने का सबसे अच्छा समय है। आप अंतिम सप्ताह तक बुवाई भी कर सकते हैं। सिंचित अवस्था में चने की बुवाई नवंबर के दूसरे सप्ताह तक करनी चाहिए, लेकिन धान कटने के बाद बुवाई हर समय नवंबर के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए। बुवाई में अधिक देर करने पर पैदावार कम होती है और फलीभेदक कीट का प्रकोप भी अधिक होता है।