Cotton: पंजाब में किसानों का कपास की फसल से मोहभंग, रकबा घटकर पंहुचा 3 गुना कम
पंजाब में कपास का रकबा इस साल घट गया है. अभी चल रहे सीजन के दौरान यह बुआई का रकबा गिरकर 94 हजार हेक्टेयर पर पहुंच गया है. साल 2019 में ये रकबा 3.35 लाख हेक्टेयर था. साल 2019 से उससे अगले तीन से चार सालों तक किसानों को कपास की फसल में बंपर उत्पादन मिलता रहा. साल 2022 में तो कॉटन के भाव 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर चले गए थे. पंजाब में तीन गुना से ज्यादा रकबा घटने में एक कारण बॉलवर्म और वाइटफ्लाई है. पिछले साल 2023 में गुलाबी सुंडी के चलते किसानों को कपास में आधा उत्पादन भी नहीं मिल पाया था. ज्यादातर किसानों की तो लागत निकालना भी मुश्किल हो गई थी.
कपास से हटकर धान में बढ़ी रुचि
रकबा घटने से कृषि विभाग के अधिकारियों को यह डर सता रहा है कि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए तो आने वाले समय में किसान कपास उगाना बंद कर देंगे और उनकी रुचि धान की खेती करने की ओर बढ़ सकती है. धान की खेती में पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है जिससे भूजल स्तर का दोहन बढ़ जाएगा. जो पर्यावरण के लिए बड़ा संकट पैदा कर सकता है.
फसल को नष्ट कर रहे किसान
राज्य के मानसा, बठिंडा और फाजिल्का जिलों के कई गांव में किसानों ने कपास की फसल को नष्ट करके पीआर 126 धान किस्म की बुवाई पर जोर दे रही है. यह किस्म में 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बॉलवर्म और वाइट फ्लाई जैसे कीटों को नष्ट करने के लिए किसानों की कीटनाशकों पर लागत बढ़ जाती है जिससे यह फसल आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो गई है. अन्य फसलों के मुकाबले किसानों को कपास की फसल में ज्यादा आमदनी होती है. परंतु धान की एक निश्चित आय है.
अच्छे बीजों की आवश्यकता
पीएयू के कुलपति डॉक्टर एसएस गोसल ने बताया कि हम चाहते हैं कि कपास के रकबे में बढ़ोतरी हो और किसानों की अच्छी फसल हो जिससे उनकी आमदनी बढ़े. दक्षिण और पश्चिमी पंजाब के कपास इलाके में किसान धान की खेती ना करिए उनके लिए उन्हें कपास के अच्छे बीजों की आवश्यकता है. कृषि विभाग के प्रमुख विशेष प्रधान सचिव केपी सिंह के मुताबिक, केंद्र के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को पूरी स्थिति से अवगत करवा दिया है. पंजाब सरकार किसानों को कम पानी की खपत वाली खेती पर ज्यादा जोर देने के लिए जागरुक कर रही है.