सरसों की बुवाई में भूलकर भी ना करें ये साधारण सी 4 गलतियां, मिलेगा बेहतर उत्पादन
Mustard Crop : इस बार अक्टूबर महीने में ज्यादा गर्मी होने की वजह से सरसों की फसल पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। एक बीच अब जाकर तापमान सामान्य होने के बाद किसान दोबारा से सरसों की बुवाई कर रहे हैं। इसलिए नवंबर में सरसों की बुवाई करने से पहले किसान इन खास बातों का जरूर ध्यान रखें, जिससे किसानों की फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

Mustard Seed : धान की कटाई के बाद रबी की फसलों की बुवाई किसानों ने शुरू कर दी है। हालांकि सरसों की बुवाई तो किसानों ने अक्टूबर में ही शुरू कर दी थी। लेकिन इस बार पिछले साल की तुलना में तापमान का ज्यादा होने पर सरसों की फसल में गहरा प्रभाव पड़ा है। क्योंकि सरसों एक ऐसी फसल है, जिसे सामान्य तापमान की जरूरत है। सरसों का छोटा पौधा नाजुक होता है जो ज्यादा गर्मी होने की वजह से झुलस जाता है। जिस वजह से किसानों को अब नवंबर महीने में सरसों की बुवाई दोबारा से करनी पड़ रही है। इस महीने में सरसों की बुवाई करते समय एक्सपर्ट के मुताबिक इन खास बातों का ध्यान रखने पर किसान बंपर उत्पादन ले सकते हैं।
एक्सपर्ट के अनुसार किसान सही समय पर सही किस्म की बुवाई करें। गुणवत्तापूर्ण बीज का उपयोग करें। बुवाई के वक्त खेत में पर्याप्त नमी उर्वरक और बुवाई की विधि पर भी विशेष तौर पर ध्यान दें। सरसों की फसल बेहद ही नाजुक होती है इसमें सिंचाई का भी विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।
सरसों की फसल में शुरुआती दौर में ही कई कीट लग जाते हैं। कीटों की रोकथाम के लिए किसान सरसों की फसल के जमाव के 5 से 7 दिन के बाद चूल्हे की राख को कीटनाशक पाउडर मेलाथियान में मिलाकर छिड़काव करते हैं। ऐसा करने से कीटनाशक की प्रभावशीलता कम हो जाती है, कीट पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाते और पौधा कमजोर हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि किसान राख में कीटनाशक ना मिलाएं। कीटनाशक मेलाथियान का छिड़काव सीधे फसल पर करें। कीटों की रोकथाम के लिए 4 किलो मेलाथियान पाउडर को प्रति एकड़ में छिड़काव किया जा सकता है।
सरसों की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। लेकिन कई बार किसान 15 से 20 दिन की सरसों की फसल को सिंचाई कर देते हैं। इसके तुरंत बाद उसमें यूरिया का भी छिड़काव करते हैं। ऐसा करने से पौधे की बढ़वार तो हो जाती है लेकिन फलियों का आकार छोटा रह जाता है, फलियों में दानों की संख्या भी कम हो जाती है। इतना ही नहीं दानों का साइज भी छोटा रहता है और ऊपज की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है।
सरसों की फसल का भाव उसमें निकलने वाले तेल की मात्रा पर निर्भर करता है। सरसों के अच्छी गुणवत्ता अधिक तेल पाने के लिए सल्फर का उपयोग बहुत जरूरी है लेकिन कई बार किसान सरसों की फसल में सल्फर का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे में जरूरी है कि सिंचाई के बाद प्रति एकड़ 4 किलो सल्फर का छिड़काव कर दें। जिससे सरसों में तेल की मात्रा बढ़ जाएगी। किसानों को अच्छा उत्पादन और अच्छा भाव मिलेगा। ध्यान रखें कि सरसों की फसल में दानेदार सल्फर का ही इस्तेमाल करें। पाउडर वाला सल्फर इस्तेमाल करने से पौधे की पत्तियों पर जम सकता है जो नुकसानदायक भी हो सकता है।