ज्यादा ठंड के कारण सरसों में आ सकते हैं ये रोग, किसान भाई इन लक्षणों पर करें गौर
How To Cultivate Mustard : उत्तर प्रदेश में तापमान तेजी से गिरने लगा है. आलम ये है कि कई इलाकों में तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. बढ़ते शीतलहर से फसलों को नुकसान पहुंच रहा है. ठंड के कारण सरसों, आलू, समेत कई फसलें प्रभावित हो सकती हैं.
Mustard News : रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं, चना, मक्का व अन्य फसलों को शीतलहर पाले से काफी नुकसान होता है। जब तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से कम होने लगता है, तब पाला पडऩे की पूरी संभावना होती है। हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाए। दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाए तथा आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाए ेतो पाला पडऩे की संभावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे प्रहर में पाला पडऩे की संभावना रहती है। ऐसे समय में फसल के बचाव का जरूरी उपाय नहीं करने पर नुकसान हो सकता है।
लेकिन इस सीजन में कोहरा एवं पाला पड़ने की वजह से सरसों की फसल में रोग लगने का खतरा भी बढ़ जाता है. साथ ही कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर पानी खारा होने या भूमि में लवणीय पदार्थ की मात्रा अधिक होने की वजह से भी सरसों की फसल रोगग्रस्त हो जाती है. तो आइए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं सरसों कि फसल में लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव के क्या उपाय हैं.
ठंड हो सकती है घातक
कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा (बीएससी एजी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद) बताते हैं कि सर्दियों की मौसम में तापमान में गिरावट होने के साथ ही लगातार पड़ रही कड़ाके की ठंड, पाला एवं कोहरा सरसों की फसल के लिए घातक होता है. से बचाव के लिए किसान कुछ जरूरी उपाय अपनाएं जिससे उन्हें किसी प्रकार के नुकसान का सामना न करना पड़े.
इन रोगों के लगने का रहता है खतरा
एक किसान ने बताया कि सरसों की फसल में आल्टरनेरिया ब्लाइट, सफेद रतुआ, झुलसा रोग तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है.
ऐसे करें बचाव
इन रोगों से बचाव के लिए किसान कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर कीटनाशक का छिड़काव करें. बाकी अलग-अलग समस्या के लिए अलग-अलग उपाय कुछ इस तरह किए जा सकते हैं.
1. आल्टरनेरिया ब्लाइट:
लक्षण:
पत्तियों, तनों और फलियों पर गोल या अनियमित भूरे-कालें धब्बे.
धब्बों के चारों ओर पीले रंग का घेरा.
रोग बढ़ने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं.
बचाव:
फसल पर मेंकोज़ेब 75% WP (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
फसल में हवा का प्रवाह बनाए रखने के लिए उचित दूरी पर पौधारोपण करें.
2. सफेद रतुआ:
लक्षण:
पत्तियों के नीचे सफेद रंग के फफोले.
तनों और फलियों पर सफेद चकत्ते.
फूलों में विकृति और फलियों का विकास रुकना.
बचाव:
मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
3. झुलसा रोग:
लक्षण:
पत्तियों के ऊपरी सतह पर पीले धब्बे.
पत्तियों के निचले भाग पर सफेद-भूरे फफूंद के लक्षण.
फसल की वृद्धि में रुकावट.
बचाव:
फसल को पाले और कोहरे से बचाने के लिए सिंचाई करें.
डाईमेथोमॉर्फ या एज़ोक्सीस्ट्रोबिन (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
4. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery mildew)
लक्षण:
पत्तियों और तनों पर सफेद चूर्ण जैसे फफूंद.
पत्तियां मुरझाकर गिरने लगती हैं.
पौधे कमजोर हो जाते हैं.
बचाव:
सल्फर 80% WP (2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें.
रोग के प्रारंभिक अवस्था में ही फफूंदनाशकों का उपयोग करें.