किसान ने शुरू की 8 से 10 महीनों में पकने वाली खेती, मिल रहा खूब मुनाफा
Benefits Of Cultivating Turmeric :देश में नीलगाय की संख्या अधिक होने की वजह से किसान काफी परेशान है। उनके प्रकोप से काफी किसानों ने परंपरागत खेती करनी छोड़ दी है। बिहार के सहरसा जिले के गांव एक किसान ने इसी बीच हल्दी की खेती शुरू की है। नीलगाय हल्दी की फसल को नुकसान नहीं पहुंचती है।
Haldi Ki Kheti : वैसे तो आपने सुना ही होगा जब इंसान कुछ करने की मन में ठान ले तो वह कितनी भी चुनौतियों का सामना करें पर वह अपना लक्ष्य प्राप्त करके रहता है। बिहार के सहरसा जिले के एक छोटे से गांव चैनपुर के किस धर्मेंद्र सिंह ने यह करके दिखाया है। नीलगाय से परेशान ना करें पिछले 10 सालों से ढाई एकड़ में हल्दी की खेती कर रहे हैं।
चैनपुर के इलाकों में किसानों ने नीलगाय के प्रकोप से परेशान होकर खेती करनी छोड़ दी है। क्योंकि नीलगाय फसलों को पूरी तरह से नष्ट कर देती थी। परंतु धर्मेंद्र सिंह ने अपने हिम्मत और जज्बे से हल्दी की खेती करने का रास्ता चुना। हल्दी की फसल को नीलगाय कोई नुकसान नहीं पहुंचती है।
हल्दी की फसल में महीने के अंत में शुरू होती है और जून के शुरुआत में इसकी रोपाई की जाती है। यह कम खर्चे में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है। हर घर की रसोई में प्रयोग होने की वजह से इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं। इस खेती को पकने में लगभग 8 से 10 महीने का समय लगता है। तथा एक कट्ठा खेत में 5 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।
किसान ने बताया कि चैनपुर गांव में नील गायों की संख्या अत्यधिक है। जिस वजह से बहुत सारे किसानों ने इस चुनौती के डर से खेती करनी छोड़ दी थी, परंतु उन्होंने इस परेशानी का सामना करते हुए हल्दी की खेती करनी शुरू की, पहले उन्होंने छोटे पैमाने पर दो से तीन काटो में हल्दी की खेती की, जब उन्होंने देखा कि नीलगाय इस फसल को नुकसान नहीं पहुंचती, तो उन्होंने हर वर्ष ढाई एकड़ में हल्दी की फसल बोना शुरू कर दी।
धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि वह अपनी कच्ची हल्दी को 2000 हजार प्रति क्विंटल के हिसाब से व्यापारियों को बेच देते हैं। हल्दी की खेती आर्थिक रूप से लाभकारी होने के साथ-साथ एक औषधीय खेती भी है। जो पर्यावरण संतुलन में काफी मदद करती है। किसान धर्मेंद्र सिंह की इस कहानी को देखकर यह लगता है, अगर किसी के अंदर कुछ करने का जज्बा हो तो वह किसी भी परेशानी को लाँघ सकता है।