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Sarson ki kheti: तेज पड़ रही ठंड और रोग से सरसों की फसल का करें बचाव

Mustard Farming : रबी सीजन की तिलहनी फसलों में सरसों की खेती महत्वपूर्ण है। सरसों की बुवाई के लिए नवंबर से लेकर दिसंबर के पहला सप्ताह सबसे उपयुक्त रहता है। वैज्ञानिकों की मानें तो नुकसान की संभावनाओं को कम करने के लिये 5 नवंबर से से लकेर 25 नवंबर से तक सरसों की बुवाई का काम निपटा लेना चाहिए।
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Sarson ki kheti: तेज पड़ रही ठंड और रोग से सरसों की फसल का करें बचाव

Mustard Farming : रबी सीजन की तिलहनी फसलों में सरसों की खेती महत्वपूर्ण है। सरसों की बुवाई के लिए नवंबर से लेकर दिसंबर के पहला सप्ताह सबसे उपयुक्त रहता है। वैज्ञानिकों की मानें तो नुकसान की संभावनाओं को कम करने के लिये 5 नवंबर से से लकेर 25 नवंबर से तक सरसों की बुवाई का काम निपटा लेना चाहिए। लेकिन कुछ किसान खेत तैयार न होने या अन्य कारणों से अब तक सरसों की बुवाई नहीं कर पाए हैं। ऐसे किसान अब सरसों की पछेती किस्मों की बुवाई कर सकते हैं।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी बस्ती रतन शंकर ओझा बताते हैं कि सरसों की पछेती किस्मों में दो प्रमुख किस्म “आशीर्वाद” और “वरदान” प्रमुख हैं। सामान्य किस्मों की तुलना में ये किस्में कम समय में तैयार हो जाती हैं। इन किस्मों को तैयार होने में लगभग 110 दिन का समय लगता है, जबकि सामान्य किस्में 130 से 135 दिनों में तैयार होती हैं।

रतन शंकर ओझा बताते हैं कि सरसों की बुवाई करते समय किसान 90 किलो नाइट्रोजन, 125 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 30 किलो पोटाश का उपयोग करें। सरसों की फसल की उचित समय पर सिंचाई करना बेहद जरूरी है। सरसों की खेती के लिए 4-5 सिंचाई की जरूरत होती है। यदि पानी की कमी हो तो 4 सिंचाई करनी चाहिए।

इसमें पहली सिंचाई बुवाई के समय, दूसरी सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद, तीसरी सिंचाई फूल आने के समय (45-50 दिन बाद )और चौथी सिंचाई (70-80 दिन बाद) फली बनते समय करनी चाहिए। यदि ठंडी के मौसम में बारिश हो जाएं, तो सिंचाई की बहुत आवश्यकता नहीं है।बुवाई के 20-25 दिन बाद सल्फर 20 किलो प्रति हेक्टेयर डालने परउत्पादन 20% तक बढ़ सकता है।

पाला और झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान भाई सुबह या शाम को खेतों में सूखी पत्तियां इकट्ठा कर आग जलाएं। आग जलाने के पश्चात उस पर हरी पत्तियां डाल दें जिससे धुआ उठने लगे। इससे वातावरण का तापमान 1-3 डिग्री तक बढ़ सकता है। इसके अलावा, शाम को ताजे पानी से हल्की सिंचाई भी की जा सकती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।

रतन शंकर ओझा बताते हैं कि पछेती किस्मों की बुवाई में समय कम मिलता है और मौसम की परिस्थितियां सामान्य बुवाई जैसी नहीं होतीं, जिसके कारण पैदावार में कमी हो सकती है। इसलिए, आशीर्वाद और वरदान जैसी प्रजातियों का उत्पादन लगभग 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है। सरसों की फसल की बुवाई सामान्यतः अक्टूबर से नवंबर माह तक की जाती है, लेकिन जो किसान भाई अब तक बुवाई नहीं कर पाए हैं, वे इन पछेती प्रजातियों की बुवाई 12 दिसंबर तक कर सकते है।