सरसों की नई वेरायटी बना देगी मालामाल, 130 दिन में मिलेगा 33.5 क्विंटल तक उत्पादन
जोन-2 में पूसा सरसों 32 किस्म (Pusa Mustard 32) भेजा गया है। यह किस्म रबी मौसम में लंबे समय तक बुवाई और सिंचित होने के लिए अच्छा है।

The Chopal, Pusa Mustard 32 : ये खबर आपके लिए है अगर आप रबी सीजन में सरसों की खेती करने की सोच रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों का एक अच्छा उत्पाद बनाया है। इस वेरायटी से बहुत अधिक उत्पादन मिल सकता है। इस वेरायटी का नाम है 'पूसा सरसों 32'। यह नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने बनाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये किस्म समय से बुवाई और सिंचित अवस्था में बेहतर है।
जोन-2 में पूसा सरसों की 32 किस्म (Pusa Mustard 32) इस राज्य के किसानों के लिए उपयुक्त है। इसमें राजस्थान (उत्तरी और पश्चिमी भाग), दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी भाग शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सरसों की इस किस्म की खेती करके किसान उच्च उत्पादन पा सकते हैं।
कैसे मिलेगा लाभ
- यह किस्म रबी मौसम में लंबे समय तक बुवाई और सिंचित होने के लिए सही है।
- इसके पौधे का मुख्य तने 73 सेंटीमीटर लंबा होता है।
- इस किस्म की फली का घनत्व अधिक होती है।
- 130-145 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है।
- यह किस्म औसतन 27.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देता है।
- इस किस्म की अधिकतम उपज प्रति हेक्टेयर 33.5 क्विंटल है।
- इस किस्म में 38 प्रतिशत तक तेल होता है।
- यह किस्म कम जल तनाव से सहिष्णु है।
पूसा मस्टर्ड-32 के फायदे:
- पूसा मस्टर्ड-32 किस्म में बहुत कम इरुसिक एसिड होता है, इसलिए हृदय रोग का खतरा कम होता है।
- इस किस्म का उत्पादन दस क्विंटल तक बढ़ेगा। जिससे किसानों का भी लाभ बढ़ेगा।
- यह किस्म प्रति हैक्टेयर लगभग 1.16 लाख रुपये की कमाई दे सकती है। जिससे उन्हें आम सरसों की खेती की तुलना में 46 हजार रुपये अधिक मिल सकते हैं।
- इसके बीज से निकलने वाले तेल में झाग कम होता है, जिससे उच्च गुण का तेल निकलता है।
- इसमें 30 माइक्रोमोल से भी कम ग्लूकोसिनोलेट है। इसके विपरीत, सामान्य सरसों में 120 माइक्रोमोल की मात्रा होती है और बिना जुगाली वाले पशु चारे के रूप में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। जबकि नई प्रजाति को पशु चारे में प्रयोग किया जा सकता है।