धान और गेहूं जैसी रूटीन फसल नही बल्कि इस खेती से किसान ने ले रहा लाखों में मुनाफा
Uttar Pradesh : उत्तर प्रदेश राज्य में सरकार द्वारा किसानों को लगातार नवाचार खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। जिसके आधार पर किसान अब नवाचार खेती की ओर अपने कदम उठा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मिर्जापुर जिले के किसान सरजू प्रसाद, जिन्होंने गेहूं और धान की जगह पपीते की खेती शुरू की और अब हजारों रुपये का मुनाफा उठा रहे हैं।
देश के बहुत से किसान परंपरागत खेती के अलावा दूसरी खेती से नुकसान ना हो जाए इस डर से नवाचार खेती करने से बच रहे हैं। मगर सरजू प्रसाद ने इस घाटे से नहीं डरते हुए पपीते की खेती की ओर अभी इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। सरजू प्रसाद द्वारा लगाए गए पपीते के पौधे लगभग नौ महीने में तैयार हो गए और अब उन्हें जबरदस्त पैदावार के साथ मुनाफा मिल रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसानों द्वारा नवाचार खेती की फसल बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता।
10 महीनों में होते हैं, पपीते के पौधे तैयार
किसान सरजू प्रसाद मौर्य ने मीडिया से कहा कि उनके द्वारा लगभग ढाई बीघा जमीन पर पपीता का उत्पादन किया जा रहा है। जिसको लगाने में लगभग दो लाख रुपये खर्च हुए थे और फसल दस महीने के अंदर तैयार हो गई थी। उनका कहना था कि अब तक 500 क्विंटल पपीता की पैदावार ली गई है, जोकि 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। अगर इस दौरान पपीता का फल ताज और उच्च क्वालिटी का हो तो इसका मूल्य और भी बढ़ जाता है।
इन संसाधनों का होना, बेहद जरुरी
किसान सरजू प्रसाद ने बताया कि पपीता उत्पादन करने वाले किसानों को कुछ महत्वपूर्ण संसाधनों के बारे में जानना बेहद जरूरी है। जिसके अंतर्गत सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम और खरपतवार को रोकने के लिए खेती की सही व्यवस्था होनी जरूरी है। इसके अलावा पपीते की खेती में आने वाली बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए जरूरत के अनुसार कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग करना बेहद आवश्यक है।
इस महीने करनी चाहिए, पपीते की बुवाई
किसान सरजू ने कहा कि परंपरागत खेती को छोड़कर किसानों के लिए पपीते की खेती मुनाफे का सौदा हो सकती है। पपीते की पैदावार साल में दो बार ली जा सकती है। इसकी पहली पैदावार जुलाई से अगस्त तक और दूसरी बार दिसंबर से जनवरी तक ली जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि दिसंबर में कीटनाशकों पर कम खर्च आता है। इसलिए किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है।