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सरसों, सोयाबीन समेत कई फसलों में आई मंदी, जानिए यह है मुख्य कारण

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New Delhi : सरकार द्वारा साथ कमोडिटी को वायदा बाजार से हटाने वालों की आयत सीमा अवधि 1 साल बढ़ाने और आरबीडी पामोलिन में आयात शुल्क 5% कम करने को किसान आंदोलन से जोड़कर देखा जा रहा है. सोमवार से किसानों और व्यापारियों में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि सरकार ने किसान आंदोलन के दबाव में जिन तीन कृषि कानूनों को वापस लिया है. उन से खिन्न होकर सरकार इस तरह के कदम उठा रही है.

किसानों का कहना है कि जब तक आंदोलन चला तब तक सभी जिंसों में वायदा चल रहा था और विशेष रूप से सरसों और सोयाबीन जब इस साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुकी थी. तब भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया सरसों करीब 9000 और सोयाबीन 11000 के सत्र पर बिक चुका है. सरसों का तेल रिटेल बाजार में ₹200 का स्तर देख चुका है. इतने ऊंचे भाव के समय भी सरकार ने न तो वायदा बाजार की सुध ली और न ही हाजिर बाजार में बढ़ती महंगाई पर कोई कदम उठाया.

किसानों का कहना है कि लगातार 1 साल तक कृषि कानून लागू करने के लिए अड़ी रही. सरकार को अतंत आगामी चुनाव को देखते हुए न केवल कानून वापस लेने पड़े. बल्कि किसानों से शमा याचना भी करनी पड़ी. सरकार के इस यू टर्न के बाद किसान काफी खुश दिखाई दिए. लेकिन अब उन्हें यह एहसास हो रहा है कि सरसों सोयाबीन सहित दाल दलहन बाजार में लौट रहा मंदा कृषि कानूनों को वापस लेने का उपहार है.

सरकार द्वारा सोमवार को वायदा बाजार पर उठाए गए सख्त कदम का सबसे बड़ा नुकसान सोयाबीन और सरसों के किसानों के साथ-साथ चना, मूंग सहित दलहन के किसानों को भी उठाना पड़ेगा. सरसों के भाव तीन-चार दिन पहले तक 8000 से ऊपर कारोबार कर रहे थे. वहीं मंगलवार को यह भाव 6700 के स्तर पर आता दिखाई दिया.

इस तरह सोयाबीन के भाव 6700 के स्तर पर बने हुए थे. जो मंगलवार को 5700 आ गए. हालांकि आम उपभोक्ता को सस्ता सरसों व अन्य खाद्य तेल उपलब्ध होने से जरूरतमंद लोगों के एक बड़े वर्ग को लाभ होगा.