The Chopal

सरसों की फसल में करें इस चीज का छिड़काव, दाने में बढ़ेगी तेल की मात्रा

Mustard Farming Tips : रबी सीजन की तिलहनी फसलों में सरसों की खेती महत्वपूर्ण है। सरसों की बुवाई के लिए नवंबर से लेकर दिसंबर के पहला सप्ताह सबसे उपयुक्त रहता है। वैज्ञानिकों की मानें तो नुकसान की संभावनाओं को कम करने के लिये 5 नवंबर से से लकेर 25 नवंबर से तक सरसों की बुवाई का काम निपटा लेना चाहिए।
   Follow Us On   follow Us on
सरसों की फसल में करें इस चीज का छिड़काव, दाने में बढ़ेगी तेल की मात्रा
Mustard Farming : सरसों रबी फसल की एक प्रमुख तिलहन फसल है। इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में एक अहम योगदान है। वहीं सरसों उत्पादन और क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में चीन और कनाडा के बाद भारत का स्थान है। सरसों की खेती किसानों के लिए काफी लोकप्रिय खेती है। इस फसल की खेती कम सिंचाई और कम लागत में आसानी से की जा सकती है। साथ ही सरसों के तेल की डिमांड बाजारों में हमेशा बनी रहती है क्योंकि सरसों के तेल के कई फायदे होते हैं।

सरसों के तेल का इस्तेमाल भारत के लगभग हर एक घर में किया जाता है। वहीं सरसों की खेती की बात करें तो इसके लिए दोमट या बलुई मिट्टी जिसकी जल निकासी अच्छी हो, वह अधिक उपयुक्त होती है। ऐसे में आपको सरसों के दाने बढ़ाने के लिए इन खादों का इस्तेमाल करना चाहिए।

इन तत्वों की पूर्ति मुख्यत

सरसों के खेत में दो किलो प्रति बीघा के हिसाब से सल्फर को प्रयोग किया जाता है। वहीं एक एकड़ दस किलो तक सल्फर का इस्तेमाल किया जाता है। कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि सल्फर का प्रयोग करने से सरसों का फूल आने के बाद उसमें दाना भी बढ़ता है। इससे तेल भी अधिक निकलता है।

उर्वरकों से की जाती है। उर्वरकों से सरसों के उत्पादन में वृद्धि तभी संभव है, जब मिट्टी जांच के आधार पर इनका समुचित मात्रा में प्रयोग किया जाए। सरसों की सिंचित फसल के लिए विभिन्न क्षेत्रों में परिस्थिति के अनुसार 80 से 100 किग्रा प्रति हैक्टेयर तथा अधिकांश क्षेत्रों में 75 से 80 किग्रा प्रति हैक्टेयर नत्रजन पोषक तत्व दिए जा सकते हैं। नत्रजन तत्व अधिक घुलनशील होता है, इसीलिए इसकी आधी मात्रा बुआई के समय और आधी पहली सिंचाई पर कलिका निकलने की अवस्था में दे सकते हैं।

सरसों के लिए उपयोगी जीवाणु खाद

सरसों फसल के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने में दो जीवाणु खाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पहला एजोटोबैक्टर और फास्फोरस घोलक जीवाणु। इसमें से एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद वायुमंडलीय नत्रजन को परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। फास्फोरस घोलक जीवाणु भूमि में अघुलनशील अवस्था में स्थित फास्फोरस को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर पौधों के ग्रहण करने योग्य बनाते हैं। इससे फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ती है और उत्पादन बढ़ता है।

बीजोपचार के लिए प्रत्येक जीवाणु खाद के 50-50 ग्राम मिश्रण को आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर एक हैक्टेयर के लिए आवश्यक बीजों में छाया में मिलाएं। उपचारित बीज को 10 मिनट तक छाया में सुखाकर तुरंत बुआई के काम में लें। यदि भूमि उपचार करना है तो 4 किलोग्राम एजोटोबैक्टर तथा 4 किलोग्राम फास्फोरस घोलक जीवाणु के मिश्रण को 100-125 किलोग्राम की गोबर की खाद में छाया में समान रुप से मिलाकर अंतिम जुताई के पूर्व खेत में बिखेर कर मिला दें। इसके बाद सिंचाई कर दें।