500 रूपये बढ़ गया इस फसल का भाव, विदेशों में भी लगातार बढ़ रही मांग, किसानों के लिए बेहतर फसल
Milet Price : दक्षिण राज्यों में मुर्गी पालन में पहले बाजरा अधिक प्रयोग किया जाता है। लेकिन बढ़ती बाजरे की मांग और इसके व्यापक उपयोग के कारण इनके दामों में वृद्धि हो रही है। 2022 में बाजरा का मूल्य 1915 रुपए था, लेकिन अगले वर्ष यह 2110 रुपए पर पहुंच गया। 2024 में यह भाव 510 रुपए से 2425 रुपए हो गया।

Rajasthan News : अब बाजरा की मांग हर साल बढ़ती जा रही है। इसलिए भाव भी अब बढ़ने लगे हैं। बाजरा की अच्छी पैदावार होने के बावजूद, इस सीजन को छोड़कर बाजरा की कीमतें बढ़ती रही। पिछले तीन वर्षों में बाजरा की कीमत 510 रुपए बढ़ी है।
बाजरा मुख्य रूप से मोटा अनाज है। जो पाचन के लिहाज से अच्छा है। दक्षिण राज्यों में मुर्गी पालन में पहले बाजरा अधिक प्रयोग किया जाता है। लेकिन बढ़ती बाजरे की मांग और इसके व्यापक उपयोग के कारण इनके दामों में वृद्धि हो रही है। 2022 में बाजरा का मूल्य 1915 रुपए था, लेकिन अगले वर्ष यह 2110 रुपए पर पहुंच गया। 2024 में यह भाव 510 रुपए से 2425 रुपए हो गया। जानकारी के अनुसार, आगे आने वाले दिनों में सर्दी का प्रभाव दिखने लगेगा, जिससे लोग इसे खरीदने लगेंगे।
125 क्विंटल बाजरा की हुई, खरीद
धौलपुर में बड़ी मात्रा में बाजरा उत्पादित होता है। लेकिन इस सीजन में अतिवृष्टि ने सैकड़ों हेक्टेयर बाजरा को बर्बाद कर दिया। अक्टूबर से अब तक, बाजरा व्यापारी जिले भर से सैकड़ों किसानों से चार हजार क्विंटल बाजरा खरीद चुके हैं। सोमवार को भी 125 क्विंटल बाजरा खरीदा गया था। व्यापारियों का कहना है कि इस सीजन में भी बाजरा की आवक 20 प्रतिशत नहीं हो रही है। अब दूसरे ब्लॉकों के किसान बाजरा वहीं बेचते हैं। तो वहीं किसान मण्डी रेट में गिरावट के कारण आढ़तियों को बेच रहे हैं।
मंडी में शुरू नहीं हुई, बाजरा खरीदी
MSP पर बात नहीं होने के कारण अभी तक मण्डी में बाजरा खरीदा नहीं गया है। इस बार राजस्थान में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बाजरा खरीदना मुश्किल है। जो केंद्र सरकार को आवश्यक बजट देने से इनकार करता है। ऐसे में राजस्थान सरकर भी सरकारी बाजार खरीद से बच रही है।
केंद्र सरकार ने बाजरे के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 2625 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया है, लेकिन यह भाव बाजार में नहीं मिलता है। MSP पर बाजार खरीदने के लिए सरकार को अतिरिक्त धन खर्च करना होगा। राज्य सरकारों को केंद्रीय मदद के बिना यह मुश्किल काम है।