गेहूं की फसल में जिंक की कमी आने पर दिखेंगे ये लक्षण, एक्सपर्ट ने बताया समाधान
Wheat Farming Tips : इन दिनों खेतों में उगे हुए गेहूं की फसल में जिंक (जेडएन) की कमी किसानों के लिए एक गंभीर पोषणीय समस्या बनकर उभर रही है, जो न केवल फसल की उत्पादकता बल्कि गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है।
Agriclture News : इन दिनों खेतों में उगे हुए गेहूं की फसल में जिंक (जेडएन) की कमी किसानों के लिए एक गंभीर पोषणीय समस्या बनकर उभर रही है, जो न केवल फसल की उत्पादकता बल्कि गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है। जिंक की कमी से पौधों की शारीरिक और जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। किसान सेवा केन्द्र सूरवाल के प्रभारी विजय जैन सहायक कृषि अधिकारी ने किसानों के खेतों का निरीक्षण कर विभिन्न जानकारियां दी। सहायक कृषि अधिकारी ने बताया कि जिंक की कमी गेहूं के पौधों में मुख्यतः बौनापन, पर्णहरित की कमी, पत्तियों पर धारियां और धब्बे तथा देर से परिपक्वता जैसे लक्षणों से पहचानी जा सकती है।
पौधों की वृद्धि बाधित होने के कारण उनकी ऊंचाई सामान्य से कम हो जाती है। पत्तियों का रंग हल्का पीला-हरा हो जाता है, विशेषकर निचली पत्तियों पर। पत्तियों पर भूरे या झुलसे हुए रंग की धारियां और धब्बे बन जाते हैं, और फसल की पकने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। जिंक की कमी का मुख्य कारण मिट्टी का उच्च पीएच, अत्यधिक फॉस्फोरस उर्वरकों का उपयोग और सिंचाई प्रबंधन नहीं हो पाना हैं।
क्षारीय या चूनायुक्त मिट्टी में जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है, और अधिक मात्रा में फॉस्फोरस डालने से जिंक का अवशोषण बाधित होता है। इसके अलावा, अधिक या कम पानी की स्थिति जिंक की गतिशीलता को प्रभावित करती है। समाधान के तौर पर मृदा उपचार, फोलियर स्प्रे, मृदा परीक्षण और सिंचाई प्रबंधन को अपनाया जा सकता है। फसल बोने से पहले 21 प्रतिशत जिंक सल्फेट की 5 किलोग्राम मात्रा प्रति बीघा मिट्टी में मिलाने से जिंक की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। बोआई के 25-30 दिन बाद, 0.5प्रतिशत जिंक सल्फेट (5 ग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 ग्राम बुझा चूना प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है। फसल बोआई से पहले मिट्टी की जांच कराकर पोषक तत्वों की स्थिति के अनुसार उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करे। फसल को नियमित सिंचाई प्रदान करें और जलभराव से बचें, ताकि पोषक तत्वों का उचित अवशोषण हो सके।
जिंक के साथ अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे लोहा (एफई), मैंगनीज (एमएन), और तांबा (सीयू) का संतुलित उपयोग फसल की उपज और गुणवत्ता में सुधार करता है तथा मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता बनाए रखता है। मृदा में जिंक की मात्रा यदि 0.6 ppm से कम हो, तो यह फसल के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसी स्थिति में 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट (ZnSO₄) का उपयोग करें। 0.6 से 1.2 पीपीएम को मध्यम स्तर माना जाता है, जो फसल की सामान्य वृद्धि के लिए पर्याप्त है, जबकि 1.2 पीपीएम से अधिक जिंक की पर्याप्त से अधिक उपलब्धता को दर्शाता है। किसानों को मृदा परीक्षण कराने की सलाह दी जा रही, ताकि पोषक तत्वों का समुचित प्रबंधन किया जा सके और फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार हो सके।