गजेंद्र शेखावत के ह्यूमैनिटीज वाले बयान पर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा का करारा जवाब
जयपुर. राजस्थान में इस चुनावी साल में बीजेपी के लिए भीतरघात का खतरा बना हुआ है. सीएम फेस से लेकर नए अध्यक्ष तक पर अंदरखाने घमासान के हालात बने हुवे हैं. आप को बता कि अब नेताओं में कहीं केमेस्ट्री बनते दिख रही है, तो कहीं मैथमेटिक्स के फॉर्मूले से खुद की लॉबी को मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही हैं। कई नेता तो इतिहास बनने और बनाने तक के चर्चे भी कर लग गए हैं. आप को बता दे की इस वक्त राजस्थान बीजेपी में बस दो ही बातों की चर्चाएं चल रही हैं- एक तो क्या पार्टी इस बार किसी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ेगी और दूसरी चर्चा यह है कि क्या चुनाव तक सतीश पूनिया भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज रहगें या फिर कोई नया चेहरा होगा ? दोनों ही सवालों का जवाब आलाकमान के अलावा किसी के पास अब तक नहीं है. मगर बात की जाए राजस्थान के कद्दावर नेता की तो वो अब अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए कहीं दिखावे में तो कहीं मजबूरी में नजदीक आते नजर आ रहे हैं। इशारों ही इशारों में मन की बातें भी निकल कर सामने आ रही हैं, जिनकी गूंज दूर तक सुनाई देने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का इंतजार करते राजस्थान के दिग्गज नेताओं की जुबां से अब निकली हर बात का अपना ही अर्थ समझने की आप कोशिश कीजिए. आप को बता दे की वसुंधरा राजे की बात यह बड़ी हिस्टोरिक बात है. इस पर तो गजेंद्र सिंह शेखावत ने जवाब दिया हें की - हिस्टोरिक थोड़े ही है…हिस्टोरिक तो अब बनेगी. आप की जानकारी के लिए बता दे की केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भाजपा में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में से एक हैं.ऐसे में उनके मुंह से निकली इस बात के सियासी मायने भी हैं.
सियासी हंसी-ठहाके और चुटकी…
वसुंधरा राजे हंसी-हंसी में माहौल को हल्का बनाते हुए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत गजेंद्र सिंह को कहती हैं कि आप इस बात को नहीं समझ सकते. इस पर गजेंद्र का कहना हें की - मैं ह्यूमैनिटीज का स्टूडेंट भी रहा हूं. इस के बाद में वसुंधरा राजे कहती हैं कि यह तो आप की साइकोलॉजी है. आप को बता दे यह सारा घटनाक्रम उन कद्दावर नेताओं के बीच चल रहा है, जो पिछले 25 साल से सूबे में भाजपा के सियासत की धुरी रहे हैं. आप को बता दे की इनमे से कटारिया, ओम माथुर अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वसुंधरा राजे अध्यक्ष के साथ-साथ दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. इनमें से जो भी कद्दावर नेताओं मे से मुख्यमंत्री नहीं बना ,वो फिलहाल सीएम इन वेटिंग लिस्ट हैं. ओम माथुर तो खूंटा गाड़ने तक की बात कर चुके हैं।
पूनिया की सियासत का रुतबा-
चुनावी साल में प्रदेश अध्यक्ष का अपना ही एक रूतबा नजर आता हैं। आप को बता दे की प्रदेश अध्यक्ष भले ही सीएम का फेस का चेहरा न हो पर लेकिन टिकटों के बंटवारे में उसकी अपनी तूती बोलती है. पूनिया के विरोधियों इसी बात को लेकर परेशान हैं. इसलिए प्रभारी अरुण सिंह सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए विरोधी धड़ा ने अपना पूरा जोर भी लगा रखा है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अपने एक्सटेंशन के बाद माना जा रहा था कि जयपुर की कार्यसमिति में नड्डा पूनिया के कार्यकाल को लेकर कोई संकेत भी देंगे. प्रभारी अरुण सिंह सतीश पूनिया ने कार्यसमिति की होने वाली बैठक से ठीक पहले 8 जिलाध्यक्ष भी बदल दिए और इस से पूनिया ने अपने विरोधियों को यह जवाब भी दे दिया कि उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना पार्टी आलाकमान के लिए भी इतना आसान होने वाला नहीं हैं. इन तमाम सवालों से दूर पूनिया खुद अपने आप को बीजेपी पार्टी का साधारण कार्यकर्ता करार देकर आलाकमान की निगाह में बने रहना भी चाहते हैं.
बीजेपी में पक रहीं सियासी खिचड़ी -
इस चुनावी साल में बीजेपी में अंदर सियासी खीचड़ी भी उबल रही है. वसुंधरा राजे समर्थक अपने नेता को सीएम फेस का चेहरा डिक्लेयर करने की मांग पर डटे हुए हैं.कई पुराने विरोधी कहीं नजदीक आते नजर आया रहें तो कही साथ-साथ चलने वाले नेता अपने सियासी हितों के लिए अपनों से किनारा भी करने लगे हैं. एक बात साफ नजर आया रहीं है कि इतने अंतरविरोधों होने के बावजूद भी फिलहाल नेताओं ने अपनी सियासी चुप्पी साध रखी है. शायद बीजेपी आलाकमान को आंख दिखाने की हिम्मत फिलहाल किसी में भी नजर नहीं आ रही.
ALSO READ - राजस्थान को बुलेट ट्रेन की सौगात, इन 7 जिलों में 9 स्टेशन बनेंगे