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Wheat: कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूं की नई किस्म, स्वाद के साथ मिलेंगे ये फायदे

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Government procurement of wheat will start from April 1 in Hisar Grain Market

New Delhi: देश के कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं (Wheat) की एक खास और बड़ी अनोखी किस्म विकसित की है. इस गेहूं के आटे से आपकी रोटी का स्वाद बिल्कुल बदल जाएगा और वो कठोर नहीं बल्कि काफी नरम भी होगी. कृषि वैज्ञानिकों की यह सफलता देश के एक बड़े हिस्से के लिए बहुत लाभकारी साबित होगी, क्योंकि गेहूं के आटे से बनी रोटी प्रोटीन और कैलोरी का एक सस्ता और प्राथमिक स्रोत भी है. साथ ही, इसे उत्तर पश्चिम भारत में प्रमुखता से और देश के अन्य हिस्सों में भी बड़े ही चाव से खाया जाता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि गेहूं की इस किस्म से नरम और हल्की मीठी चपाती बनती है. गेहूं की इस किस्म को ‘पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ नाम से जाना जाता है, जिसे पंजाब में राज्य स्तर पर सिंचित दशाओं में समय से बुवाई के लिए जारी भी किया गया है. गेहूं के इस किस्म की खेती (Farming)  व्यवसायिक रूप से भी ज्यादा लाभकारी साबित होगी.

ये रोटी जरूरी गुणवत्ता व विशेषताओं में अधिक कोमलता, हवा से फुलने की क्षमता, नरम बनावट और हल्का मलाईदार भूरा रंग, इसे थोड़ा चबाने पर पके हुए गेहूं की सुगंध भी शामिल हैं. दैनिक आहार का हिस्सा होने के बावजूद आधुनिक गेहूं की किस्मों में रोटी की गुणवत्ता के लक्षण बिल्कुल नहीं होते हैं. देश मे लंबी पारंपरिक गेहूं की किस्म सी 306 रोटी की गुणवत्ता के लिए सबसे अच्छी मानक रही है. बाद में पीएयू ने पीबीडब्ल्यू 175 किस्म विकसित की इसमें भी अच्छी गुणवत्ता थी. हालांकि अब ये दोनों धारीदार और भूरे रंग की रतुआ रोग के लिए अतिसंवेदनशील हो गए हैं. अब चुनौती उच्च उपज क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को संयोजित करने और वास्तविक रोटी गुणवत्ता को बनाए रखने की भी है.

विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग से भी मिली मदद

इस चुनौती को स्वीकार करते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की गेहूं प्रजनन टीम ने पीबीडब्ल्यू 175 की पृष्ठिभूमि में लिंक्ड स्ट्राइप रस्ट और लीफ रस्ट जीन एलआर-57/वाईआर-40 के लिए मार्कर असिस्टेड सेलेक्शन का उपयोग करके यह एक नई किस्म विकसित की है. उन्होंने इस किस्म को विकसित करने के दौरान विविध जैव रासायनिक परीक्षणों का उपयोग करके अलग करने वाली सामग्री का परीक्षण करके रोटी बनाने के मापदंडों को भी सही बरकरार रखा है.

अंतिम उत्पाद विशेष और बायो फोर्टिफाइड गेहूं के जर्मप्लाज्म का विकास पहले प्रजनन परिधि के तहत ही था और इसे स्वस्थ भारत थीम के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग पर्स अनुदान से बड़ा ही प्रोत्साहन मिला. इससे गुणवत्ता प्रजनन पर ध्यान देने के साथ एक व्यावसायिक उत्पाद विकसित करने के लिए विविध लक्षणों के लिए विभिन्न जीन पूलों को समेकित करने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है. यह उत्पादकता-उन्मुख प्रौद्योगिकी से पैदावार के साथ-साथ पोषण वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की तरफ एक बड़ा बदलाव है. संसृत संकर से निकलने वाला और अधिक जस्ता, कम फाइटेट्स, उच्च कैरोटेनॉयड्स, कम पॉलीफेनोल्स और उच्च अनाज प्रोटीन सामग्री के नए संयोजन वाला गेहूं वैराइटी पाइपलाइन में अब आ गया है.

आग पर घंटों सेंकने के बाद भी नरम रहेगी रोटी

इस नई किस्म के जारी होने तक 1965 में जारी सी-306 अपने आप में एक बहुत ब्रांड बन गया था और किसान गुणवत्ता को लेकर सिर्फ उस किस्म पर निर्भर थे, बावजूद इसके पत्ती में रतुआ लगने और रहने की संभावना भी रहती थी. गेहूं की नई किस्म पीबीडब्ल्यू-1 चपाती से पहले कोई दूसरी किस्म सी306 के गुणवत्ता मानक से मेल नहीं खाती थी और पिछले कुछ वर्षों से पंजाब के बहुत से उपभोक्ता मध्य प्रदेश के गेहूं की तरफ जाने होने होने लगे थे,जिसे प्रीमियम आटे के रूप में विज्ञापित किया गया था और यह काफी महंगे दाम पर उपलब्ध होता था.

गेहूं की किस्म ‘पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ का असली मकसद अच्छी चपाती गुणवत्ता, स्वाद में मीठा और बनावट में नरम होने के कारण व्यावसायिक स्तर पर पैदा हुई इस रिक्ति को भी भरना है. चपाती का रंग समान रूप से सफेद ही होता है और यह घंटों सेंकने के बाद भी बिल्कुल नरम रहता है.