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कपास में नहीं रहेगी किट की समस्या, जेनेटिकली मोडिफाइड बीज हुआ विकसित

Lucknow News: यह खबर भारतीय किसानों के लिए बड़ी राहत लेकर आ सकती है। सीएसआईआर-एनबीआरआई द्वारा विकसित जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) कपास किसानों को कीटों से होने वाले नुकसान से बचाएगी और उत्पादन में वृद्धि करेगी।
 
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कपास में नहीं रहेगी किट की समस्या, जेनेटिकली मोडिफाइड बीज हुआ विकसित

The Chopal: सीएसआईआर राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान( CSIR National Botanical Research Institute) ने जेनेटिकली मोडिफाइड या आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास बनाया है। इसमें कोई कीट नहीं होगा। संस्थान ने नागपुर की कंपनी से इसका बीज किसानों तक पहुंचाने का अनुबंध किया है। अगले तीन वर्षों में इसका बीज किसानों को मिलने लगेगा।

एनबीआरआई के निदेशक डॉ. अजीत कुमार शासनी ने शनिवार को प्रेसवार्ता कर बताया कि देश में वर्ष 2002 में आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास आई थी।अमरीकी कंपनी मोनसेंटो ने बोलगार्ड-1 और बोलगार्ड-2 जैसी किस्मों को विकसित करने का प्रयास किया, लेकिन पिंक बॉलवर्म, या गुलाबी इल्ली कीट, के खिलाफ पूरी तरह से प्रतिरोधी नहीं हो पाए। इससे कपास उत्पादन में भारी गिरावट हुई। देश भर में, पिंक बॉलवर्म को गुलाबी सूंडी कहा जाता है।

Dr. PK Singh और उनकी टीम ने पिंक बॉलवर्म को फिर से बढ़ाने के लिए एक नया कीटनाशक जीन बनाया है। इसकी भी जांच की गई है। प्रयोगशाला परीक्षणों से भी पता चला कि पिंक बॉलवर्म के प्रति नया कपास अत्यधिक प्रतिरोधी है। यह कपास के पत्ते के कीड़े और फॉल आर्मीवर्म से भी बचाता है।

कृषकों को आर्थिक और पर्यावरणीय फायदे

नए बीज से कपास की पैदावार 20 प्रतिशत बढ़ सकती है। किसानों की आय प्रति हेक्टेयर लगभग 10,000 रुपये बढ़ जाएगी। किसानों को बार-बार कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करने से प्रति हेक्टेयर लगभग दो हजार रुपये की बचत होगी। पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
 

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