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गेहूं की ये 5 किस्में किसानों को बना देगी मालामाल, बंपर पैदावार बदलेगी तकदीर

Wheat farming : नवंबर में गेहूं की बुवाई करना चाहते हैं तो इन पांच किस्मों को बुवाई करके बदलती जलवायु के बावजूद बड़ी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इन किस्मों में अधिक उपज क्षमता, जलवायु सहनशीलता और बीमारियों से सुरक्षा जैसे गुण हैं, जो किसानों को अधिक लाभ और बेहतर गुणवत्ता वाली फसल देंगे। इन किस्मों की बुवाई से किसानों की आय और पैदावार दोनों बढ़ जाएगी।

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गेहूं की ये 5 किस्में किसानों को बना देगी मालामाल, बंपर पैदावार बदलेगी तकदीर 

The Chopal : गेहूं की बुवाई अक्सर नवंबर तक होती है, लेकिन खरीफ फसल की कटाई के बाद दिसंबर में भी गेहूं की बुवाई की जा सकती है। गेहूं की खेती के लिए दोमट और रेतीली दोमट मिट्टी नमी को बनाए रखती है और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाती है। अच्छी पैदावार के लिए सही किस्म और समय पर बुवाई दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं। बेहतर किस्में फसल की पैदावार और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। उच्च गुणवत्ता वाली गेहूं की किस्में इस रबी सीजन में आपकी पैदावार में काफी सुधार हो सकता है। ये किस्में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने विकसित की हैं, जो ना सिर्फ अधिक उत्पादन देते हैं, बल्कि किसी भी मौसम में पैदावार पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

ये गेहूं किस्में बढ़िया उत्पादन देंगे

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के संस्थानों ने बदलती जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कुछ बेहतरीन गेहूं की किस्मों को विकसित किया है, जो बदलते मौसम के बावजूद उच्चतम पैदावार देने में सक्षम हैं। इन किस्मों को खासतौर पर भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाया जाएगा, ताकि किसानों को जलवायु परिवर्तन से बचाया जा सके और उनकी आय में वृद्धि हो सके। नवंबर महीने में किसान इन पांचों किस्मों को बो सकते हैं, तो उन्हें बेहतरीन उत्पादन मिल सकता है।

DBW 187 (करण वंदना)

DBW 187, यानी करण वंदना गेहूं, 2019 में पैदा हुआ एक नवीनतम और सुधारित प्रजाति है। यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के उत्तर-पूर्वी भागों में विकसित हुई है। करण वंदना किस्म का पत्ता झुलसने की बीमारी से अधिक प्रतिरोधी है। 77 दिनों में यह किस्म फूल देती है और 120 दिनों में पककर तैयार होती है। इसकी औसत ऊंचाई सौ सेंटीमीटर है। 25 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज मिलती है।

Hd 3086, पूसा गौतमी

पूसा गौतमी HD 3086 गेहूं की एक किस्म है, जो समय पर बुवाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए बेहतर है। यह किस्म उत्तर-पश्चिमी मैदानों में 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जबकि उत्तर-पूर्वी मैदानों में इसे पकने में केवल 121 दिन लगते हैं। 22-23 कुंतल प्रति एकड़ औसत उपज है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पीले और भूरे रतुआ रोगों से बचता है, जिससे इन रोगों का असर कम होता है। इस किस्म के बीज की मांग को पूरा करने के लिए 204 बीज कंपनियों को लाइसेंस दिया गया है।

Hd 3226 (पूसा यशस्वी)

एचडी 3226, पूसा यशस्वी भी कहलाता है, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने एक उन्नत गेहूं की किस्म विकसित की है। यह किस्म पीले, भूरे और काले जंगों से बहुत सुरक्षित है। इसकी खेती से प्रति एकड़ 30 से 32 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है। 5 नवंबर से 25 नवंबर के बीच इसे बुना जा सकता है। अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में बुआई करने से अधिक उपज मिलती है। इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में सफलतापूर्वक बोया जा सकता है। सही समय पर देखभाल और बुआई करने से किसान सब कुछ पा सकते हैं।

HD 2967 गेहूं

HD 2967 गेहूं एक बेहतरीन और अनुकूलित किस्म है, जो पूरे भारत में लोकप्रिय है। इसकी फसल लगभग 150 दिनों में तैयार होती है और प्रति एकड़ 22 से 23 क्विंटल उत्पादन देती है। यह पीले रतुआ रोग से बचता है। इस किस्म को कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सफलतापूर्वक खेला जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 1 नवंबर से 15 नवंबर के बीच अगेती बुवाई करने से पैदावार बेहतर होगी।

HD CSडब्ल्यू 18

HD CSW 18 की उपज 25 से 26 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 150 दिनों में पककर तैयार होने वाली पीली रतुआ रोगों से बचती है। यह किस्म भी हीट वेव और उच्च तापमान में भूरे रतुआ रोग से बचती है। 15 नवंबर तक इस किस्म की बुवाई करनी चाहिए. पौधे की औसत ऊंचाई 110 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

इन गेहूं की किस्मों को अपनाकर किसान बदलती जलवायु में भी अधिक उत्पादन पा सकते हैं। नवंबर में इन किस्मों की बुवाई करने से किसान जलवायु में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित होने के बावजूद अच्छी उपज और अधिक पैसा प्राप्त कर सकते हैं।