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Father's Property : पिता को ऐसी संपत्ति बेचने से नहीं रोक सकता बेटा, 1964 के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला,

Supreme Court : एक बेटे ने अपने पति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में संपत्ति बेचने के मामले में सन् 1964 में केस दर्ज करवाया था। अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए ये भी बताया है कि पिता को कैसी संपत्ति बेचने से बेटा नहीं रोक सकता।
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Father's Property: Son cannot stop father from selling such property, a decision of the Supreme Court in the 1964 case

The Chopal News : सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि पारिवारिक कर्ज चुकाने या अन्य कानूनी जरूरतों के लिए यदि परिवार का मुखिया पैतृक संपत्ति बेचता है तो पुत्र या अन्य हिस्सेदार उसे कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते। 

यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 54 वर्ष पहले दायर एक मुकदमे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एक बार यह सिद्ध हो गया कि पिता ने कानूनी जरूरत के लिए संपत्ति बेची है तो हिस्सेदार इसे अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। यह मामला पुत्र ने अपने पिता के खिलाफ 1964 में दायर किया था। मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने तक पिता और पुत्र दोनों इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने मामले को जारी रखा। 

जस्टिस ए.एम. सप्रे और एस.के. कौल की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि हिन्दू कानून के अनुच्छेद 254 में पिता द्वारा संपत्ति बेचने के बारे में प्रावधान है। इस मामले में प्रीतम सिंह के परिवार पर दो कर्ज थे और वहीं उन्हें खेती की जमीन में सुधार के लिए पैसे की भी जरूरत थी। पीठ ने कहा कि प्रीतम सिंह के परिवार का कर्ता होने के कारण उसे पूरा अधिकार था कि वह कर्ज चुकाने के लिए संपत्ति बेचे।

अनुच्छेद 254(2) में प्रावधान है कि कर्ता चल/अचल पैतृक संपत्ति को बेच सकता है, रेहन रख सकता है यहां तक कि वह पुत्र तथा पौत्र के हिस्से को भी कर्ज चुकाने के लिए बेच सकता है। लेकिन यह कर्ज पैतृक होना चाहिए और किसी अनैतिक और अवैध कार्य के जरिए पैदा न हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक व्यवसाय या अन्य जरूरी उद्देश्य कानूनी आवश्यकताओं के तहत आते हैं। 

पैतृक संपत्ति बेची जा सकती है

पैतकृ कर्ज चुकाने के लिए, संपत्ति पर सरकारी देनदारी के लिए, परिवार के हिस्सेदारों और उनके परिवारों के सदस्यों के भरण-पोषण के लिए, पुत्र के विवाह तथा उनकी पुत्रियों के विवाह के लिए, परिवार के समारोह या अंतिम संस्कार के लिए, संपत्ति पर चल रहे मुकदमे के खर्च के लिए, संयुक्त परिवार के मुखिया के खिलाफ गंभीर आपराधिक मुकदमे में उसके बचाव के लिए।

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