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Poultry Farming : 3 तरीकों से किया जाता है मुर्गी पालन, जान लें किसमें है अधिक फायदा

Egg Farming : अगर आप भी मुर्गी पालन करके पैसा कमाना चाहते हैं, तो इस लेख में हम आपको उन तीन तरीकों के बारे में बताने जा रहे हैं।

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Poultry Farming: Poultry farming is done in 3 ways, know which one has more benefits.

The Chopal News : अंडे-मांस की बढ़ती मांग ने पोल्ट्री खेती को एक नया लाभदायक क्षेत्र बना दिया है। अब बहुत से किसान और शहरी लोग पोल्ट्री खेती करके अच्छे पैसे कमा रहे हैं। अब राज्य सरकारें भी मुर्गी पालन की नीतियां बना रही हैं, क्योंकि देश-विदेश में अंडे की मांग लगातार बढ़ रही है। इन स्कीमों में आवेदन करने वालों को भी धन मिलता है। ये आर्टिकल पोल्ट्री में करियर बनाने की सोच रहे लोगों के लिए है। पोल्ट्री फार्म बहुत कम निवेश में खोला जा सकता है, लेकिन आपको बता दें कि पोल्ट्री फार्म का मकसद सिर्फ अंडे और मांस उत्पादन करना नहीं है, बल्कि चूजों का उत्पादन करना भी है।

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ब्रायलर, लेयर और देसी मुर्गी फार्म भी पोल्ट्री कारोबार हैं। बजट और मुनाफा भी इन पोल्ट्री फार्म्स से अलग होते हैं, इसलिए यदि आप अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो इन तीनों के बारे में जानना भी जरूरी है।

ब्रायलर पोल्ट्री फार्म

ब्रायलर पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों की काफी साफ-सफाई और संवेदनशीलता से देखभाल की जाती है. मुर्गियों का खाने के लिए खास तरीके का फीड और आसपास काफी साफ-सफाई रखी जाती है, जिससे मांस का और मुर्गी के अंडों से अच्छे चूजे मिल सकें, हालांकि कम समय में ही अंडे और मांस का प्रोडक्शन लेना होता है, इसलिए मुर्गियों के रहने की जगह का तापमान भी नियंत्रित किया जाता है.

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एक चूजा करीब 120 दिन में तंदुरुस्त मुर्गी के रूप में तैयार हो जाता है, जबकि अंड़ों से ब्रायलर चूजे निकलने में करीब 30 दिन लग जाते हैं. पोल्ट्री फार्म की इस तकनीक से कारोबार करने पर मुर्गी की देखभाल आदि में थोड़ा खर्चा जरूर होता है, लेकिन इस बिजनेस में नुकसान की संभावना ना के बराबर रहती है. 

लेयर पोल्ट्री फार्म

अगर बड़े पैमाने पर अंडों का उत्पादन लेना है तो लेयर पोल्ट्री फार्म करने की हिदायत दी जाती है. ये पोल्ट्री फार्म का व्यावसायिक रूप है, जिसमें पिंजरे बनाकर लाइन में मुर्गियां पाली जाती है. पिंजरे के अंदर ही मुर्गियों को दाना-पानी मिल जाता है. इन मुर्गियों की देखभाल की जाती है, जिससे ज्यादा चिकन का प्रोडक्शन मिले. 17 सप्ताह तक मुर्गी का वजन 1.2 किलोग्राम होता है, लेकिन 76 सप्ताह में मुर्गी का वजन बढ़कर 1.7 किलोग्राम हो जाता है. ये मुर्गियां करीब 19वें सप्ताह से लेकर 72 वें सप्ताह तक 330 अंडे दे देती हैं, जिनका वजन 60 ग्राम तक होता है. इसके बाद इन्हें बूचड़खानों में बेच दिया जाता है. 

देसी मुर्गियों का फार्म

बाजार में देसी मुर्गियां और इनके अंडों की खूब डिमांड रहती है. ये मुर्गियां खेती के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ने में मददगार होती हैं. गांव में ज्यादातर देसी मुर्गियों को छोटे पैमाने पर ही रखा जाता है. बैकयार्ड में ये मुर्गियां पाली जाती है. इनके अंडे किसानों की आय बढ़ाते हैं. देसी मुर्गियों का ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती.

इन मुर्गियों को कोई खास आहार नहीं देना पड़ता, बल्कि किचन वेस्ट, दाने, फल-सब्जियां और जमीन पर रेंगने वाले कीड़े-मकौडों से ही पेट भर लेती है. छोटे पैमाने पर खेती करने वाले किसान ज्यादातर देसी मुर्गियां पालते हैं. बता दें कि इन मुर्गियों के चारों तरह घूमना बहुत पसंद होता है.

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