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Property Dispute : क्या पत्नी पति को कर सकती है प्रॉपर्टी से बेदखल, कोर्ट का ये बड़ा फैसला

High Court's decision : हमेशा संपत्ति के बारे में बहस होती है। मान लें कि पति और पत्नी एक साथ संपत्ति खरीदते हैं और फिर उनके बीच विवाद हो जाता है, तो संपत्ति का बंटवारा होता है। अब सवाल उठता है कि पत्नी मिलकर खरीदी गई संपत्ति से अपने पति को छोड़ सकती है या नहीं। हाल ही में हाईकोर्ट ने ऐसे ही मामले पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है— 

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क्या पत्नी पति को कर सकती है प्रॉपर्टी से बेदखल,  कोर्ट का ये बड़ा फैसला

The Chopal, High Court's decision : वैवाहिक संबंधों में तनाव अक्सर कानूनी लड़ाइयों में बदल जाता है। प्रॉपर्टी से लेकर बच्चों की देखभाल और सुरक्षा तक कई बातें इसमें शामिल हो सकती हैं। घरेलू हिंसा भी रिश्तों में कड़वाहट और अलगाव का एक बड़ा कारण है।

लेकिन क्या कोई पत्नी पति के साथ मिलकर खरीदे गए घर से उसे निकाल सकती है? या इसके उलट, क्या कोई पति अपनी पत्नी को घर से निकाल सकता है? इसे लेकर न्यायालय ने क्या निर्णय लिया है और कानून क्या कहता है? ऐसा ही एक मामला मुंबई के एक मैजिस्ट्रेट कोर्ट में आया था जिसमें पत्नी ने अपने पति को घर से निकालने की मांग की थी, जिसे दोनों ने मिलकर खरीदा था।

मुंबई में इसी हफ्ते एक मैजिस्ट्रैट कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। कोर्ट ने निर्णय दिया कि पति को घर पर रहने का कानूनी अधिकार है और उसे बाहर नहीं निकाला जा सकता। पति-पत्नी ने भायखला में एक घर खरीदा था। पति ने न्यायालय से मांग की कि उसके पति को इस घर से निकाला जाए। कोर्ट ने निर्णय दिया कि पति को उस घर पर कानूनी अधिकार है और उसे बाहर नहीं निकाला जा सकता। कोर्ट ने कहा, "इसके अलावा उसका ये नैतिक फर्ज है कि वह अपनी पत्नी औ बेटियों के साथ घर में रहे ताकि उनकी देखभाल कर सके।"महिला और उसकी बेटियां एक दूसरे से अलग रहती हैं। यद्यपि, न्यायालय ने शख्स को आदेश दिया कि वह पत्नी को प्रति महीने 17 हजार रुपये की मैंटिनेंस राशि दे। महिला ने पहली बार अगस्त 2021 से मैंटिनेंस मिलेगा।

महिला ने अपने पति, ससुर और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत की थी। उसने न्यायालय को बताया कि 2007 में उसकी शादी हुई थी। :2008 और 2014 में उसकी दो बेटियां हुईं। उसने आगे कहा कि व्यक्ति सरकारी नौकरी करता है और उसके साथ लोन पर एक फ्लैट खरीदा था। महिला का कहना है कि वह काम करने के साथ-साथ घर भी संभालने लगी तो ससुराल वाले उसे ताना मारने लगे और प्रताड़ित करने लगे, ये सोचकर कि सब ठीक हो जाएगा।

महिला ने कहा कि हर समस्या उसके ऊपर होती थी। 2008 में उसकी ननद के पति की मौत होने पर भी उसे दोषी ठहराया गया था। उसने फिर अपने पति का घर छोड़ दिया। पति ने उसे बाद में घर लाया, लेकिन उसने शर्त लगाई कि वह अलग घर में रहेगी। पति-पत्नी ने भायखला में एक फ्लैट खरीदा, लेकिन जल्द ही महिला के ससुराल वाले भी वहां रहने लगे। महिला का दावा है कि इसके बाद उसे नए फ्लैट में भी दुर्व्यवहार किया गया। उसे दूसरी बेटी पैदा करने के लिए भी ताने मारे गए।

महिला ने न्यायालय को बताया कि उसके पति एक सरकारी पद पर काम करता है और हर महीने 1 लाख 30 हजार रुपये कमाता है। उसने हर महीने पांच सौ हजार रुपये का गुजारे भत्ता माँगा। उसने फ्लैट पर अपना अधिकार भी मांगा। अन्यथा, पति ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया। पति ने कहा कि पत्नी 2021 में अपनी मर्जी से घर छोड़ दिया था।

कोर्ट में व्यक्ति ने दावा किया कि घर खरीदने के लिए उसने अपने पनवेल फ्लैट को भी बेच दिया था। उसने अपने पैसे से एक नया फ्लैट और एक कार खरीदी जो एक महिला चलाती है। आखिरकार, न्यायालय ने निर्णय दिया कि व्यक्ति अपनी पत्नी को प्रति महीने 17 हजार रुपये का मैंटिनेंस देना चाहिए। जिस दिन महिला ने पहली बार अदालत का रुख किया था, अगस्त 2021 से फैसला लागू होगा। हालाँकि, फ्लैट से पति को बाहर निकालने की महिला की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून, 1956, के तहत एक महिला को अपने पति की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। हिंदू संयुक्त परिवार के कॉपरसनेर, यानी सहकारी, ही पैतृक संपत्ति में अधिकारी हैं। पत्नी अपने पति की पारिवारिक परिवार में सहभागी नहीं है, इसलिए उसे पैतृक संपत्ति पर अधिकार नहीं है। हां, महिला पैतृक संपत्ति में अपने पति का हिस्सा लेने पर अधिकारी है। पति की बिना वसीयत किए मौत पर पत्नी का अधिकार होगा। यदि वसीयत लिखी गई हो तो संपत्ति उसी के हिसाब से बाँट दी जाएगी।

महिला को ससुराल के घर में रहने का पूरा अधिकार है। हिंदू अडॉप्शंस एंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 के तहत हिंदू पत्नी को अपने ससुराल में रहने का अधिकार है, चाहे वह घर का मालिक हो या नहीं। यह मायने नहीं रखता कि ससुराल का घर पैतृक संपत्ति है, पारिवारिक परिवार का है, स्वअर्जित है या किराये पर है। महिला को अपने ससुराल में रहने का ये अधिकार है जब तक वह अपने पति के साथ शादी कर चुकी है। पति से अलग होने पर एक महिला मैंटिनेंस का दावा कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2020 में घरेलू हिंसा कानून के तहत एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अगर कोई महिला 2005 के घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत दर्ज कराती है, तो उसे 2005 के कानून के तहत ससुराल के साझा घर में रहने का अधिकार है, चाहे वह किराये का हो या ससुराल वालों के स्वामित्व वाला हो. घर। इस प्रमुख निर्णय ने घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को बहुत राहत दी है। अब ससुराल वाले ऐसी महिलाओं को इस आधार पर घर छोड़ने को मजबूर नहीं कर सकते कि घर में उनके पति का कोई स्वामित्व नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में अपने एक फैसले में 'साझे के घर' का दायरा स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि महिला साझे वाले घर में रह सकती है। महिलाओं को साझे वाले घर में रहने का हक है, चाहे वे जिस भी धर्म से संबंधित हों, चाहे वे मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास, बहू या घरेलू संबंधों से संबंधित हों।

उसे उस घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता। जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की बेंच ने स्पष्ट किया कि अगर कोई महिला शादी के बाद पति के साथ किसी दूसरे स्थान पर रहने का निर्णय लेती है, तो वह साझे वाले घर में रहने का हक बना रहेगा, चाहे वह पढ़ाई, रोजगार, नौकरी या किसी अन्य वाजिब कारण से हो। उसे घरेलू हिंसा कानून की धारा 17 (1) द्वारा ये अधिकार दिए गए हैं।

यद्यपि, पत्नी का साझे के घर में रहने का अधिकार निरंतर नहीं है। समय-समय पर अदालतों ने कुछ अपवाद भी निर्धारित किए हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने मार्च 2022 में कहा कि सास-ससुर की संपत्ति में बहू को रहने का अधिकार पर्मानेंट नहीं है। उसके सास-ससुर उसे घर से बाहर निकाल सकते हैं। इस मामले में ससुर 74 साल का था और सास 69 साल का था। कोर्ट ने कहा कि दोनों को अपने जीवन की सांझ में खुश रहने का अधिकार है। उसकी पत्नी और बेटे के वैवाहिक विवाद से उनका चैन नहीं छीनना चाहिए।

जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में कहा कि अगर बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर को मार डालती है, तो वे उसे अपने घर से निकाल सकते हैं। बहुओं को ससुराल के घर से लेकर संपत्ति तक में क्या अधिकार हैं? 

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