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उत्तर प्रदेश में चिलचिलाती गर्मी से बुरा हाल, जाने पिछले 100 साल के तापमान का लेखा जोखा

UP Today Mausam : उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लगातार गर्मी बढ़ी है। गर्मी ने अप्रैल में ही रिकॉर्ड तोड़ने शुरू भी कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मौसम की गतिविधियों पर लगातार नजर भी रखी है। मौसम विभाग ने एक अध्ययन के मुताबिक पिछले सौ वर्षों में तापमान में किस कदर बढ़ोतरी हुई है। 

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उत्तर प्रदेश में चिलचिलाती गर्मी से बुरा हाल, जाने पिछले 100 साल के तापमान का लेखा जोखा 

UP News : यूपी (UP Ka Mausam) में पिछले कुछ दिनों से तापमान इतना बढ़ गया है कि लोगों को जून महीने की गर्मी का एहसास होने लगा है। प्रचण्ड गर्मी पूरे उत्तर प्रदेश में छा गई है। इस गर्मी से लोगों को कई समस्याएं हो रही हैं। मौसम विभाग (weather Update) ने एक अध्ययन में पाया कि राज्य में पिछले सौ वर्षों में तापमान कर दर से बढ़ा है। प्रदेश का अधिकतम तापमान प्रति शताब्दी 0.27 डिग्री सेल्सियस से बढ़ रहा है, जैसा कि मौसम विभाग ने बताया है। 

लखनऊ मौसम केंद्र के वैज्ञानिक लगातार लू के दिनों की संख्या और पारे में उतार-चढ़ाव पर निगरानी कर रहे हैं। अध्ययन, वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक अतुल कुमार सिंह के अनुसार, 1901 से 2022 के बीच उत्तर प्रदेश में औसत तापमान में प्रति शताब्दी 0.13 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।

जबकि अधिकतम तापमान 0.27 डिग्री सेल्सियस की दर से दोगुनी हुई है। न्यूनतम तापमान में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं है। 0.01 डिग्री सेल्सियस की कमी हुई है। इसके अलावा वर्षा भी घटी है। 20वीं सदी में वार्षिक और मानसूनी बरसात में कोई खास बदलाव नहीं हुआ, लेकिन 2000 से सामान्य बरसात में गिरावट का ट्रेंड रहा है। 1961 से 1990 के बीच बरसात के मुख्य महीनों (जुलाई से अगस्त) में औसत 300 मिमी बारिश हुई, लेकिन 1990 से 2000 के बीच यह सिर्फ 250 से कुछ अधिक रह गया।

सबसे गर्म पांच वर्ष 

अब तक 1941 में 0.908 डिग्री, 1958 में 0.719 डिग्री, 2010 में 0.639 डिग्री और 1953 में 0.635 डिग्री व 1921 में 0.57 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी का ट्रेंड देखा गया है।

सूख रहीं नदियां-झीलें

बीते 100 सालों में मौसम विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में प्रदेश के तापमान बढ़ने का सच सामने आया है। तापमान और प्रदूषण में गंभीर वृद्धि के कारण मध्य गंगा के मैदानी इलाकों में झीलें और जल स्रोत सूख रहे हैं।

बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज लखनऊ के वैज्ञानिकों की अध्ययन टीम में शामिल डॉ. बिनीता फर्तियाल, डॉ. बिस्वजीत ठाकुर, डॉ. अनुपम शर्मा और डॉ. स्वाति त्रिपाठी के मुताबिक ये अध्ययन गोरखपुर, बलिया, मऊ और प्रतापगढ़ जिले में किया गया। इसमें पाया गया कि गर्म मौसम व पश्चिमी विक्षोभ के विस्तार के कारण वर्षा का पैटर्न बदला है। डॉ. स्वाति बताती हैं हमने मिट्टी के नमूने लेकर जांच की। उनमें फंगल की अधिकता पाई गई, जिसके कारण परागकण नष्ट हो रहे हैं। ये इस बात का संकेत हैं कि नदी-झीलों का जलस्तर घट रहा है, इन्हें संरक्षित करने की जरूरत है।

औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने से बढ़ा पीपीएम

वरिष्ठ वैज्ञानिक सीएम नौटियाल के मुताबिक, अमेरिका का नेशनल ओशन एंड एटमोस्फेरिक एंड मिनिस्ट्रेशन कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों के परिवर्तन पर नजर रखे हैं। उनके निष्कर्ष ये बता रहे हैं कि 200 से भी कम वर्षों में औद्योगीकरण बढ़ने से पीपीएम यानी पार्ट्स पर मिलियन में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। प्रमुख कारण है कोयले एवं हाइड्रोकार्बन का जलाया जाना है। कृषि की गतिविधियों में मीथेन निकलती है।