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Sister Property : बहन की संपत्ति में भाई का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने 2014 का हाईकोर्ट का फैसला रखा बरकार

Sister's Property : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में फैसला देते हुए कहा है कोई व्यक्ति अपनी शादीशुदा बहन की ससुराली संपत्ति पर हक नहीं जता सकता। कोर्ट ने कहा कि क्योंकि भाई को न तो उत्तराधिकारी माना जा सकता है और न ही उसके परिवार का सदस्य.
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Sister Property: How much right does brother have in sister's property, Supreme Court upheld the High Court's decision of 2014

The Chopal : सुप्रीम कोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में फैसला दिया है कि कोई व्यक्ति अपनी शादीशुदा बहन की ससुराली संपत्ति पर हक नहीं जता सकता। कोर्ट ने कहा कि क्योंकि भाई को न तो उत्तराधिकारी माना जा सकता है और न ही उसके परिवार का सदस्य। इसलिए बहन की ससुराली संपत्ति पर उसका कोई हक नहीं है।  

शीर्ष अदालत ने हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए यह फैसला दिया। जिसमें किसी ऐसी महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार संबंधी आदेश हैं जिनकी मृत्यु वसीयत लिखने से पूर्व हो जाती है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और आर. भानुमति की पीठ ने कहा, ‘अनुच्छेद (15) में इस्तेमाल भाषा में स्पष्ट कहा गया है कि पति और ससुर की पैतृक संपत्ति पति या ससुर के वारिस को ही हस्तांतरित की जा सकती है। जिससे उस महिला को विरासती संपत्ति दी जा सकती है।’ शीर्ष अदालत ने यह अहम फैसला उत्तराखंड हाईकोर्ट के मार्च 2015 के फैसले को बरकरार रखते हुए इसे चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

हिंदू उत्तराधिकारी कानून के मुताबिक दिया फैसला

यह मामला देहरादून की एक संपत्ति पर अनधिकृत कब्जा करने वाले उस व्यक्ति से संबंधित है जिसने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। यह जायदाद उसकी बहन के ससुराल वालों की थी और इस पर किरायेदार के रूप में रहते ही उसकी बहन की मृत्यु हो गई थी। पीठ ने कहा कि इस जायदाद को उस महिला के ससुर ने 1940 में पट्टे पर लिया था और इसके बाद महिला का पति उसका किरायेदार बना। पति की मृत्यु के बाद महिला ही उस संपत्ति की किरायेदार थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ललिता (बहन) की मृत्यु के बाद उसकी किसी संतान की अनुपस्थिति में हिंदू उत्तराधिकारी कानून की धारा 15 (2) (बी) के मुताबिक, जायदाद का पट्टा उसके पति के वारिसों को ही हस्तांतरित हो सकता है। इस मामले में मृतक महिला के भाई और याचिकाकर्ता को उस परिवार का सदस्य नहीं माना जा सकता।’

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