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UP के इन गांवों की जमीन का अधिग्रहण कोर्ट ने किया रद्द, अथॉरिटी को बड़ा झटका

Noida - हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ये कहा जा रहा है कि नोएडा के इस गांवों की जमीन का अधिग्रहण कोर्ट ने रद्द कर दिया है। जिसके चलते नोएडा अथॉरिटी को बड़ा झटका लगा है। आइए नीचे खबर में विस्तार से जानते है ट्राईसिटी टुडे में छपी एक खबर के माध्यम से...इस बारे में विस्तार से।
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The court canceled the acquisition of land of these villages of UP

The Chopal , UP Noida : नोएडा अथॉरिटी और गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। अदालत ने इस गांव में लंबित भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि राजस्व रिकॉर्ड को दुरुस्त किया जाए। नोएडा अथॉरिटी का नाम जमीन के रिकॉर्ड से हटाकर किसानों का नाम दर्ज किया जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को गैर कानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया था। अब किसानों ने हाईकोर्ट को बताया कि अथॉरिटी और जिला प्रशासन आदेशों पर अमल नहीं कर रहे हैं।

क्या है पूरा मामला-

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट पंकज दुबे ने बताया कि किसानों ने नई याचिका में नए भूमि अधिग्रहण आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की। दरअसल, 04 मार्च 2023 को अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्याप्ति) ने एक आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने राजस्व रिकॉर्ड से नोएडा अथॉरिटी का नाम हटाने की मांग की है। अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्याप्ति) ने नोएडा के स्थान पर किसानों का नाम दर्ज करने की अर्जी को अस्वीकार कर दिया। पंकज दुबे ने बताया कि याचिकाकर्ताओं की उपरोक्त भूमि का अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 की धारा 17(1)(4) के तहत किया गया था। किसानों ने 11 सितंबर 2008 और 30 सितंबर 2009 की अधिसूचनाओं को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। राजेंद्र एस्टेट बनाम यूपी राज्य और अन्य मामले में हाईकोर्ट ने 24 सितंबर 2010 को किसानों की याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलटा-

हाईकोर्ट में हारने के बाद 2013 में किसानों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सर्वोच्च्च न्यायालय ने 11 सितंबर 2008 और 30 सितंबर 2009 की अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया। पंकज दुबे ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का ऑपरेटिव भाग इस प्रकार है. "अपील को अनुमति दी जाती है। विवादित आदेश निर्धारित किया जाता है कि अधिसूचना दिनांक 11.09.2008 और 30.09.2009 एकतरफा हैं। उन्हें रद्द किया जाता है। हालांकि, यह स्पष्ट कर दिया गया है कि राज्य सरकार प्रक्रिया का पालन करते हुए दोबारा भूमि अधिग्रहण करने के लिए स्वतंत्र होगी। यह प्रक्रिया अधिनियम के तहत निर्धारित है।"

नोएडा अथॉरिटी का नाम नहीं हटा-

पंकज दुबे के मुताबिक, "सुप्रीम कोर्ट का साफ-साफ़ आदेश आने के बाद याचिकाकर्ताओं ने एडीएम (एलए) से अनुरोध किया कि राजस्व रिकॉर्ड से नोएडा अथॉरिटी का नाम हटाया जाए। अब 04.03.2023 को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट
(भूमि अध्याप्ति) ने याचिकाकर्ताओं का प्रत्यावेदन खारिज कर दिया। एडीएम ने आदेश में लिखा कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में दायर सिविल अपील में पक्षकार नहीं थे। लिहाजा, लाभ के हकदार नहीं होंगे।

'फैसले का लाभ सबको मिलेगा'-

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि एक बार भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा-4 और 6 के तहत अधिसूचनाएं सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दी हैं तो कुछ नहीं बचा है। नोएडा अथॉरिटी और जिला प्रशासन आदेश का आदर नहीं कर रहे हैं। जब राजेंद्र एस्टेट के मामले में कोर्ट ने अधिसूचनाएं रद्द कर दी हैं तो इसका प्रभाव तो पूरे अधिग्रहण पर पड़ेगा। रिट में जाने वालों को लाभ मिलेगा और बाकी को नहीं मिलेगा, यह सवाल ही नहीं बचता है। लिहाजा, इस कानूनी स्थिति का लाभ सभी को मिलेगा।

भूमि अधिग्रहण की नई प्रक्रिया शुरू हुई-

एडीएम की ओर से हाजिर सरकारी वकील ने स्वीकार किया कि अब तक कोई अवॉर्ड घोषित नहीं किया गया है। नोएडा प्राधिकरण का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर रहा है। राजेंद्र एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि भूमि के नए सिरे से अधिग्रहण के लिए कदम उठाए। अब 19.01.2019 को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (भू-अध्याप्ति) के माध्यम से सलारपुर में भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव भेजा गया। दिनांक 07.04.2021 और 03.09.2021 को अनुस्मारक भेजे गए। एडीएम के यहां से कोई उत्तर नहीं आया है।

गजराज और सावित्री देवी पर हुई चर्चा-

एडवोकेट पंकज दुबे ने बताया कि हाईकोर्ट ने फैसला सुनाने से पहले गौतमबुद्ध नगर के इन दो ऐतिहासिक मुकदमों की चर्चा की। अदालत ने कहा, इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, यह नोट करना प्रासंगिक है, जिन अधिसूचनाओं को राजेंद्र के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, इस न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा बरकरार रखा गया था। जबकि, गजराज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य से जुड़े मामले में रिपोर्ट किया गया है। गजराज मामले में फैसले को बरकरार रखा गया था और सुप्रीम कोर्ट ने सावित्री देवी बनाम यूपी राज्य मामले में भी याचिकाकर्ताओं को राहत। ऐसा प्रतीत होता है कि राजेंद्र एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के मामले में इन तथ्यों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नहीं रखा गया। स्थिति इस प्रकार उभरकर आती है कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अधिग्रहण को रोकता है। लिहाजा, कार्रवाई अवैध होगी, लेकिन सावित्री देवी के मामले में जो निर्णय दिया गया था, वह उन्हीं सूचनाओं को बरकरार रखता है।

अब कोर्ट ने सुनाया यह फैसला-

अदालत ने अपने फैसले में कहा है, 'रिट याचिका स्वीकार की जाती है। उत्तरदाता को निर्देशित किया जाता है कि राजस्व अभिलेखों से नोएडा अथॉरिटी का नाम हटा दिया जाए। किसानों की भूमि पर उनका नाम चढ़ाने के लिए चार सप्ताह के अंदर आदेश का अमल करें। अथॉरिटी और प्रशासन भूमि अधिग्रहण करने के लिए स्वतंत्र हैं। कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया अपनाने का विकल्प खुला छोड़ दिया गया है।'

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