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supreme court decision : क्या पति को चुकाना पड़ेगा पत्नी का कर्ज, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

supreme court decision : वास्तव में, पति-पत्नी के संबंधों को सात जन्मों का संबंध माना जाता है और उन्हें एक इकाई माना जाता है। पति-पत्नी के बीच खर्च का हिसाब नहीं है। हालाँकि, पति पत्नी अलग-अलग रूप से अपने खर्चों को गणित करते हैं और एक दूसरे से पैसे लेने के तरीके को नोट करते हैं। वहीं, वे अलग-अलग ही खर्च करना पसंद करते हैं क्योंकि वे कहीं से कर्ज लेते हैं। वहीं, पति-पत्नी अक्सर एक दूसरे की जिम्मेदारी भी उठाते हैं। ऐसे मामले में पति को पत्नी के ऋण का क्या भुगतान करना होगा? सुप्रीम कोर्ट ने इसी नेचर मामले में क्या निर्णय लिया है? आइए जानते हैं नियम क्या कहते हैं। 

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supreme court decision : क्या पति को चुकाना पड़ेगा पत्नी का कर्ज, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

The Chopal, supreme court decision : सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के वित्तीय व्यवहार पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि क्या पति पत्नी का कर्ज लौटाएगा या नहीं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का निर्णय पलट दिया है। यह मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 

सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक समझौते और पति-पत्नी के बीच वित्तीय लेन-देन की प्रकृति को देखते हुए निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे मामलों में बहुत कुछ क्लीयर हो रहा है। आइए पूरी बात जानें और सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्णय लिया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। इसमें कहा गया है कि एक पति को अपनी पत्नी के शेयर बाजार में हुए घाटे का दोष देना होगा। पति-पत्नी के बीच मौखिक समझौता हो या दोनों का वित्तीय व्यवहार एक साथ जिम्मेदार ठहराना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहाँ लागू होगा?

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन मामलों में लागू होगा जहां एक पति और पत्नी ने आपस में निवेश करने और किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी साझा करने का अनुबंध किया हो। सुप्रीम कोर्ट का आदेश शेयर बाजार से जुड़े कानूनों पर प्रकाश डालता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह महत्वपूर्ण मुद्दा है

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक सहमति को अहम माना है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि दोनों पक्षों के बीच हुई मौखिक सहमति उनके ट्रेडिंग अकाउंट्स के संचालन और घाटे की जिम्मेदारी से संबंधित होनी चाहिए। इस परिस्थिति में यह समझौता वैध होगा। यानी, मौखिक सहमति के बिना यह वैध नहीं होगा।

होईकोर्ट की निर्णय पर पुनर्विचार 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति को इस मामले से बाहर कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि मौखिक समझौते से वित्तीय नुकसान का पति जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। पर सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने नेक फैसला किया कि ब्रोकर का दावा सही था और पति को भी नुकसान का दोषी ठहराया जा सकता है। इस निर्णय से स्पष्ट हो गया है कि पति को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। 

मौखिक समझौता कानूनन मान्यता प्राप्त होगा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच एक मौखिक समझौता कानूनी रूप से वैध हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बीएसई नियमों और सेबी के दिशा-निर्देशों पर कोई असर नहीं पड़ता है। 

पति को कर्ज का दोषी ठहराया जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक अनुबंध के आधार पर पति को पत्नी के शेयर बाजार ऋण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि दोनों पक्षों के बीच लिखित अनुमति के बिना भी साझा वित्तीय उत्तरदायित्व स्वीकार किया जा सकता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पति को भी कर्ज चुकाना पड़ सकता है अगर पत्नी ने ऐसा किया है। 

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