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धरती पर अरबों-हजारों सालों से जमी बर्फ अब तेजी से पिघल रही है

Earth Losing Ice: हमारी धरती पर करोड़ों सालों से जमी 9 हजार गीगाटन बर्फ पिघल चुकी है. इससे हमें क्या-क्या नुकसान होगा विस्तार से बात करेंगे.
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धरती पर अरबों-हजारों सालों से जमी बर्फ अब तेजी से पिघल रही है

Earth Ice Losing Climate Change: क्या आपको पता है कि बीते 50 सालों के दौरान हमारी धरती ने 9000 हजार गीगाटन बर्फ गवां दी है. यानी कि ये बर्फ पिघल चुकी है. परंतु क्या आप जानते हैं कि 9000 गीगाटन होता कितना है. एक गीगाटन बर्फ का मतलब 100 करोड़ मिट्रिक टन बर्फ, और 1 मिट्रिक टन में 1000 किलो होता है. ऐसे में यदि आपको 9000 हजार गीगाटन को किलो में लिखना है तो 9 के आगे 15 जीरो लगाने होंगे यानि की 9,000,000,000,000,000 किलोग्राम, आपको बता दें कि 9000 हजार गीगाटन इतनी बर्फ है कि यदि पूरे जर्मनी पर इसको फैला दें तो 25 मीटर से भी ज्यादा मोटी बर्फ की चादर होगी. इसी तरीके से यदि इस बर्फ को पूरे भारत पर फैला दें तो 3 मीटर से ज्यादा मोटी चादर होगी.

कहां गई है इतनी सारी बर्फ 

परंतु अब बड़ा सवाल ये है की 9 हजार गीगाटन बर्फ गई कहां, और इस बर्फ से हमारा क्या नुकसान होगा? नुकसान की बात करें तो अगर ऐसे ही हमारी धरती से बर्फ गायब होती रही तो एक दिन पीने का पानी खत्म हो सकता है. अब आप सोचेंगे कि ऐसा कैसे, तो चलिए आपको पूरा विस्तार से समझाएंगे, हमारी इस धरती पर जितना भी ताजा पानी मौजूद है. उसमें से लगभग 70 फ़ीसदी बर्फ के रूप में मौजूद है. जो धरती के अलग-अलग हिस्सों में बर्फ के रूप में जमा हुआ है. पृथ्वी के दो धुर्व यानि की आर्कटिक और अंटार्कटिका में मोटी चादर के रूप में जमी हुई है

परंतु इसके अलावा भी बर्फ बहुत से पहाड़ों में भी जमी हुई है. युगों युगों यानी कि सैकड़ो हजारों सालों से जमी हुई इस बर्फ को हम ग्लेशियर कहते हैं. इन ग्लेशियरों के जरिए निकलने वाली नदियों के जरिए हमें पीने का ताजा पानी मिलता है. रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी यानी कि 2 अरब लोगों की जरूरत का ज्यादातर पानी ग्लेशियरों से हासिल होता है. गर्मियों में बर्फ पिघलना शुरू कर देती है. परंतु सर्दियों का मौसम आने के बाद जितनी बर्फ पिघली है उसकी भरपाई बर्फबारी कर देती है.सैकड़ो सालों से धरती पर इसी तरीके की प्रक्रिया चलती रहती है.

2024 में ग्लेशियरों से 450 गीगाटन बर्फ पिघल गई

परंतु अगर गर्मी बढ़ती है तो बर्फ तेजी से पिघलेगी और कम जमेगी. वर्तमान समय में ऐसा ही हो रहा है. इस समय दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से गायब हो रहें है. जो एक चिंता का विषय है. ग्लेशियरों का इस तरीके से गायब होना पहले कभी नहीं देखा गया. आर्कटिक से लेकर आल्प्स पर्वतों और दक्षिण अमेरिका से लेकर तिब्बत के पठारों तक बर्फ लगातार घटती ही जा रही है. इतना ही नहीं बल्कि हिमालय में भी बर्फ की मौजूदगी दिनों दिन कम हो रही है. हो रही इन घटनाओं का कारण है जलवायु परिवर्तन, और जलवायु परिवर्तन की वजह है जीवाश्म ईंधन यानी कि तेल, कोयला और प्राकृतिक गैस जिन्हें धरती से निकाला जाता है. इनका इस्तेमाल करने से हमें लगातार ऊर्जा तो मिलती रहती है. लेकिन इस दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन की वजह से धरती का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है. जिससे हमारा वातावरण गर्म होता है और बर्फ तेजी से पिघलती है.

समुद्र के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी

बीते साल 2024 के दौरान ग्लेशियरों से 450 गीगाटन बर्फ पिघल गई. ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ का सिर्फ इतना ही नुकसान नहीं है कि वह हमारा पीने का पानी खत्म हो रहा है बल्कि पहाड़ों में पिघलने वाली बर्फ से मैदानी इलाकों से नदियों के जरिए उसका पानी समुद्र में जा मिलता है. जिस समुद्र के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इसका नतीजा यह है कि दुनिया भर में पानी की आपूर्ति का संतुलन बिगड़ता है जिससे बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है. इस पानी के से दुनिया भर के लोग पीने और सिंचाई समेत कार्यों पर निर्भर है. जो इलाके पानी की आपूर्ति के लिए पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ पर निर्भर है. वहां ग्लेशियरों के लगातार घटने से सुखे की मार जैसा खतरा पैदा होगा.

पीने योग्य का 70% पानी ग्लेशियरों में जमा

साल 2000 से लेकर 2023 के बीच पहाड़ों के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में 18 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. यानी कि हर साल समुद्र का जलस्तर 1 मिलीमीटर बढ़ रहा है. वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस का कहना है कि समुद्र के जलस्तर में बढ़ाने वाला प्रत्येक मिलीमीटर लगभग 3 लाख लोगों के लिए सालाना बाढ़ का खतरा पैदा कर रहा है. यह बात बिल्कुल सही है कि पृथ्वी के 70 फ़ीसदी हिस्से पर पानी है. परंतु इसमें 97 प्रतिशत तो समुद्र का खारा पानी है. जो पीने योग्य लायक नहीं है. ताजा पानी मात्र 3% है. जो पीने योग्य है. ताजा पानी ( पीने योग्य) का 70% पानी ग्लेशियरों में जमा है. जलवायु परिवर्तन के चलते यह बर्फ का पिघलने वाला पानी यदि समुद्र में चला जाएगा तो हमारे सामने पीने के पानी का संकट पैदा हो सकता है. क्या हम इसके लिए तैयार हैं. एक ऐसा भविष्य जहां पर पीने का पानी ही ना हो. अभी के समय तो पानी है परंतु जलवायु परिवर्तन के चलते ऐसे ही होता रहा तो आगे की स्थिति खराब हो सकती है.