UP में बनने जा रहा ये नया रिंग रोड़, 26 गावों की जमीन का होगा अधिग्रहण
UP : गोरखपुर जिले में जंगल कौड़िया-जगदीशपुर फोरलेन रिंग रोड का निर्माण तय समय पर शुरू हो पाना फिलहाल संभव ही नहीं है। हकीकत तो यह है कि 26 गांव के किसानों से सहमति के आधार पर 154 हेक्टेयर जमीन ली जानी है, मगर अभी तक जमीन का एक टुकड़ा भी जीडीए के पास नहीं है। ज्यादातर गांवों के किसान तैयार नहीं है। उनकी मांग है कि मुआवजे की राशि मौजूदा बाजार दर के मुताबिक दी जाए। यानि 20 गुना ज्यादा।
सड़क का सर्वे पूरा होने के बाद एनएचएआई की तरफ से पिलर भी लगा दिया गया है। अब भूमि का मुआवजा देने के लिए सहमति पत्र पर दस्तखत लेने की प्रक्रिया शुरू हुई है। इसी क्रम में एसएलओ और एनएचएआई की टीम शुक्रवार की दोपहर एक बजे इटहियां पहुंची। इसके पहले ही सूचना पाकर 100 से अधिक ग्रामीण वहां जुटे गए थे। टीम में शामिल कर्मचारियों ने 10 रुपये के स्टैंप पेपर पर सहमति पत्र भरवाने की बात शुरू की। पहले तो ग्रामीणों ने ध्यान से कर्मचारियों की बात सुनी। इसके बाद हंगामा शुरू कर दिया।
शिलान्यास को तीन महीने बीते, काम शुरू होने में अभी और लगेगा समय-
जंगल कौड़िया -जगदीशपुर रिंग रोड की राह में जमीन के साथ ही वन विभाग की एनओसी भी बाधा बनी है। एनओसी तो फिर भी मिल सकती है, मगर मुआवजे के पेच के चलते जमीन का मामला सुलझाना आसान नहीं दिख रहा। करीब 1925 करोड़ की लागत से प्रस्तावित 26.6 किलोमीटर लंबे इस रिंग रोड का निर्माण जून में शुरू होना है।
दो साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य है। शहर के चारों तरफ रिंग रोड तैयार होने में अब सिर्फ यही एक पैच बाकी रह गया है। इसके बन जाने से लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज या बिहार की तरफ जाने के लिए बाहर के लोगों को शहर में नहीं दाखिल होना पड़ेगा, जिससे जाम की समस्या कम हो जाएगी। इसी सोच के साथ मुख्यमंत्री की पहल पर केंद्र सरकार ने प्रस्ताव स्वीकृत किया और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मार्च में इसका शिलान्यास किया था।
मुआवजे पर भड़के किसान तो लौटी अफसरों की टीम-
रिंग रोड के निर्माण के लिए सहमति के आधार पर जमीन अधिगृहीत करने के लिए जा रही एसएलओ (भूमि अध्याप्ति अधिकारी) और एनएचएआई के अधिकारियों, कर्मचारियों को हर जगह विरोध झेलना पड़ रहा है। कहीं भी किसान जमीन देने को तैयार नहीं हैं। शुक्रवार को बनकटी उर्फ इटहिया गांव पहुंची टीम को किसानों का गुस्सा झेलना पड़ा। किसानों ने मौजूदा दर पर प्रस्तावित मुआवजे को बाजार दर से काफी कम बताते हुए सहमति पत्र पर दस्तखत करने से मना कर दिया। ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ता देख टीम आधे घंटे में ही वहां से निकल गई। किसानों ने बताया कि टीम को हमले का डर था।
किसानों की शिकायत थी कि सात साल पहले 2016 के सर्किल रेट के मुताबिक मुआवजा दिया जा रहा है, जो बहुत कम है। इस दर पर अपनी जमीन नहीं देंगे। टीम को बृहस्पतिवार को सरैया पंचायत भवन पर भी इसी तरह का विरोध झेलना पड़ा था। दोनों विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों ने वहां तीन पंचायतों परसिया, रसूलपुर और सोनराइच के किसानों को बुलाया था। मगर, वहां के किसानों ने भी मुआवजे की मौजूदा प्रस्तावित दर पर जमीन देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा।
पांच लाख रुपये प्रति डिस्मिल या जमीन के बदले दिलाइए जमीन-
गांव के हरीराम ने कर्मचारियों से कहा कि यहां चार से पांच लाख रुपये प्रति डिस्मिल भूमि बिक रही है। आप लोग महज 68 हजार देना चाहते हैं। 2016 के सर्किल रेट पर हम लोग कतई अपनी जमीन नहीं देंगे। एनएचएआई के सर्वेयर चंद्रशेखर ने कहा कि हम लोग मुआवजा आवेदन की प्रक्रिया समझाने और सहमति पत्र भरवाने आए हैं। अधिक कीमत की बात आप लोग डीएम और सीडीओ से कीजिए। इतना सुनते ही ग्रामीण और आक्रोशित हो गए और हंगामा शुरू कर दिया। उन्होंने सहमति पत्र भरने से मना कर दिया।
किसानों ने क्या कहा-
हर जमीन के बदले दे दें जमीन-
इश्तियाक अहमद ने कहा कि मुआवजा न दें, जमीन के बदले जमीन ही दे दें। कल सरैया में विरोध हुआ था। आज हमारे गांव इटहिया के लोगों ने भी व्यवस्था को अपना फैसला सुना दिया। इस दर पर हम जमीन नहीं देंगे।
चार से पांच लाख रुपये प्रति डिस्मिल है रेट-
प्रधान गुलाब चंद ने कहा कि चार से पांच लाख रुपये प्रति डिस्मिल भूमि बिक रही है। सरकार के भुगतान का हिसाब किताब 68 हजार रुपये प्रति डिस्मिल पड़ रहा है। ऐसे में हम लोग अपनी भूमि कैसे दे सकते हैं।
खेत की जमीन निकल जाएगी तो खाएंगे क्या-
हरीराम जायसवाल ने कहा कि हम लोगों की पुस्तैनी भूमि है। खेत की जमीन निकल जाएगी तो क्या खाएंगे। जो पैसा मिलेगा, उससे आसपास भूमि नहीं खरीद पाएंगे। यहां मेन रोड के किनारे प्रति डिस्मिल 10 लाख रुपये से अधिक कीमत है।
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