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World Goat Day: बकरी को किसानों का ATM बोला जाता है, क्या है वजह

Goat Farming: एक समय था जब बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता था। बहुत सारे स्थानों पर तो संपन्न लोग बकरी पालन को अपनी तौहीन समझते थे। लेकिन आज गरीबों की वही गाय उनका एटीएम बन चुकी है।
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बकरी को किसानों का ATM बोला जाता है, क्या है वजह 

World Goat Day: देश में बकरियों की 37 नस्लें हैं जो दूध, मांस, और महंगे ऊन के लिए पाली जाती हैं। इसमें से कुछ नस्लें ऐसी हैं जो दूध और मांस दोनों के लिए पाली जाती हैं, जबकि कुछ नस्लें दूध और मांस के लिए अलग-अलग पाली जाती हैं। महंगा ऊन देने वाली नस्ल की बकरियां ठंडे और पहाड़ी इलाकों में पाली जाती हैं।

एक समय था जब बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता था। बहुत सारे स्थानों पर तो संपन्न लोग बकरी पालन को अपनी तौहीन समझते थे। लेकिन आज गरीबों की वही गाय उनका एटीएम बन चुकी है। यही वजह है कि केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा में बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने आने वालों में बिना पढ़े-लिखे भी होते हैं, तो बीए-बीएससी, पीएचडी और बीटेक डिग्री होल्डर भी शामिल होते हैं। 

बकरी के दूध और मांस की मांग को देखते हुए 100 बकरे-बकरियों से लेकर पांच-पांच हजार बकरे-बकरियों के फार्म खुल रहे हैं। जब जरूरत हो तो बकरी का दूध निकाल लो, और जब जरूरत पड़े तो बकरे-बकरियों को बाजार में बेचकर नकद रुपये ले लो।

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सरकार भी अपनी तमाम योजनाओं से बकरी पालकों की मदद कर रही है। करोड़ों रुपये रिसर्च पर खर्च किए जा रहे हैं। नस्ल सुधार के लिए दूसरे देश हमारे यहां से बकरे और बकरियां ले जा रहे हैं। खाड़ी के देश हमारे यहां पलने वाली कुछ खास नस्लों के बकरों के मांस के दीवाने हैं। 

हालांकि आमतौर पर बकरे-बकरियों का पालन मांस और दूध के लिए होता है। लेकिन कुछ ठंडे और पहाड़ी इलाकों में बकरी महंगे पश्मीना (रेशे) के लिए चांगथांगी और गद्दी नस्ल के बकरे-बकरियां भी पाली जाती हैं।

मीट के लिए पाल सकते हैं इस नस्ल के बकरे। मीट के लिए पाले जाने वाले बकरे वजन के हिसाब से बिकते हैं। इसके लिए जखराना एक अच्छी नस्ल है। अलवर, राजस्थान में एक गांव है जखराना। इसी गांव के नाम पर बकरे-बकरियों की एक नस्ल को जखराना के नाम से जाना जाता है। 

इस नस्ल को खासतौर पर दूध और मांस के लिए ही पाला जाता है। देखने में जखराना के बकरे ही नहीं, बकरियां भी ऊंची और लम्बी-चौड़ी नजर आती हैं। जखराना के बकरे 55 से लेकर 58 किलो वजन तक के होते हैं, लेकिन कभी-कभी 60 किलो और उससे ज्यादा वजन तक के भी मिल जाते हैं। 

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जखराना की पहचान उसकी लम्बाई-चौड़ाई, काला रंग, और मुंह पर सफेद रंग के धब्बे से होती है। देश में करीब 9 लाख के आसपास इनकी संख्या है। इसके अलावा बरबरे, जमनापरी, बीटल, और ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे भी पाले जा सकते हैं।

बकरियां गाय से अधिक दूध देती हैं। गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना के वाइस चांसलर डॉ. इन्द्रजीत सिंह ने किसानों के साथ बात करते हुए बताया कि बीटल नस्ल की बकरी प्रतिदिन पांच लीटर तक दूध देती है, जबकि देसी गाय का औसत दूध 2.5 लीटर प्रतिदिन होता है। 

गाय को रोजाना सात से आठ किलो सूखा चारा चाहिए, जबकि बकरी के लिए दिनभर में दो किलो बहुत होता है। बीटल बकरी साल में दो बार बच्चे देती है, और एक बार में बकरी दो से तीन बच्चे तक देती है। गाय की तुलना में, बकरियों को बीमारियों का कम खतरा होता है, जिससे उनके इलाज का खर्च भी कम होता है। 

बकरी का दूध मेडिसिनल होता है और उसका जल्दी हजम होने में मदद करता है। बकरी की खाल के लैदर का मूल्य भी उच्च होता है, और खासकर ब्लैक बंगाल बकरी के लैदर की बड़ी मांग होती है। बकरे का मांस स्वादिष्ट, गुणवत्ता युक्त, और पोषणपूर्ण होता है। बकरी की मेंगनी और उसके यूरिन का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने में किया जाता है। 

बकरी पालन बड़े स्थानों में आसानी से किया जा सकता है, और उन्हें हर प्रकार के जलवायु में अपने को ढालने की क्षमता होती है। इसके साथ ही, बकरी पालन एक अच्छा व्यवसाय भी हो सकता है, जो दूसरों को नौकरियां प्रदान करने के साथ-साथ खुद को भी मुनाफे में रख सकता है। एक बकरी तीन तरीकों से फायदा पहुँचाती है: पहले दूध, फिर मांस, और उसके बाद खाल।

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