उत्तराखंड की जादुई घाटी देख नहीं होगा आंखों पर यकीन, 15 दिन में बदलती है रंग
Uttrakhand News : उत्तराखंड की खूबसूरती में सिर्फ पहाड़, बर्फ और नदियाँ ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसी रहस्यमयी और चमत्कारी जगहें भी हैं, जिन्हें देखकर या उनके बारे में जानकर लोग हैरान रह जाते हैं। अगर आप भी इस सुंदर स्थान को देखना चाहते हैं, तो जून के अंत तक यहां जा सकते हैं।

Magical Valley: उत्तराखंड में घूमने के लिए कई जगह हैं, लेकिन कुछ जगह इतनी अलग हैं कि आपको उन पर विश्वास करना मुश्किल होता है। ऐसा ही स्थान है 'फूलों की घाटी' या 'वैली ऑफ फ्लावर्स' ये जगह नेचर प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है, और ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए भी अच्छा है। 1 जून से ये घाटी पर्यटकों के लिए हर साल खुली रहती है, जो अक्टूबर के अंत तक जारी रहती है। उत्तराखंड की वैली ऑफ फ्लावर्स, हर दो हफ्ते में अपना रंग बदलती है। चलिए जानते हैं इस सुंदर घाटी की कुछ खास बातें, साथ ही पूरी ट्रैवल गाइड।
कहाँ फूलों की घाटी है?
नंदा देवी नेशनल पार्क के पास उत्तराखंड के चमोली जिले में फूलों की घाटी है। यह घाटी लगभग 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है और समुद्र तल से करीब 12,000 फीट की ऊंचाई पर है। 500 से अधिक किस्मों के फूल इसमें पाए जाते हैं। खास बात यह है कि इन फूलों में कई अलग-अलग प्रजातियाँ भी हैं। इस घाटी को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है। इस घाटी में हर साल दुनिया भर से हजारों लाखों लोग आते हैं।
इस सुंदर फूलों की घाटी की खोज कैसे हुई?
वनस्पति शास्त्री फ्रैंक सिडनी स्माइथ ने 1932 में उत्तराखंड के चमोली में स्थित 'वैली ऑफ फ्लावर्स' घाटी की खोज की। वास्तव में, स्माइथ ने पर्वतारोहण से वापस आते समय रास्ता भटकते हुए इस सुंदर घाटी पर नजर पड़ी। बाद में वे 1937 में इस घाटी पर आकर कई दिनों तक रुके, जिस पर वे पुस्तक 'वैली ऑफ फ्लावर्स' लिखी। अपनी किताब में उन्होंने इस घाटी से कई रोचक बातें बताईं। अपनी किताब में उन्होंने यह भी बताया कि हर पंद्रह दिन में 'वैली ऑफ फ्लावर्स' घाटी पर फूलों का रंग बदलता है। शायद यही कारण है कि इसे जादुई घाटी भी कहा जाता है।
कैसे वैली ऑफ फ्लावर्स घाटी पहुंचे?
हर साल, पर्यटकों के लिए "वैली ऑफ फ्लावर्स" घाटी सिर्फ चार महीने के लिए खुली रहती है। 1 जून से लेकर अंतिम अक्टूबर तक पर्यटक इस सुंदर घाटी को देख सकते हैं। यहां पहुंचने से पहले आपको ऋषिकेश या हरिद्वार जाना होगा। फिर वे वहां से सड़क पर जोशीमठ गए और वहां से गोविंदघाट गए। गोविंद घाट से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर पुलना पहुंचे। अब यहाँ से लगभग 11 किलोमीटर चलकर घांघरिया जाना होगा। घांघरिया से 'वैली ऑफ फ्लावर्स' की दूरी लगभग चार किलोमीटर पैदल चलकर तय करनी पड़ेगी।
यात्रा करने से पहले इन बातों का ध्यान रखें
याद रखें कि "वैली ऑफ फ्लावर्स" के आसपास कोई दुकान या कुछ भी नहीं है। ऐसे में बेस कैंप घांघरिया से ही अपनी जरूरत का सामान लेकर जाएं, जैसे खाने-पीने का सामान और पानी। इसके अलावा, आपको यहां ट्रैवल के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। भारतीय टूरिस्ट का खर्च 150 रुपए है, जबकि फॉरेनर टूरिस्ट का खर्च 600 रुपए है।