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Wheat: वैज्ञानिकों ने तैयार की गेहूं की नई किस्म, 70 प्रतिशत कम पानी में पकेगी

जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं की पैदावार घटने का डर बना हुआ है. इसलिए किसानों ने गेहूं की एक नई किस्म तैयार की है जो 70% कम पानी में भी ज्यादा उत्पादन दे सकती है.
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Wheat: वैज्ञानिकों ने तैयार की गेहूं की नई किस्म, 70 प्रतिशत कम पानी में पकेगी

Wheat New Variety: जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले कुछ महीनो में तापमान में बड़ा उतार चढ़ाव आने लगा है. उत्तर भारत में गर्मी का प्रकोप बढ़ गया है. इस साल गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. बढ़ते हुए तापमान का सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ता है. कृषि वैज्ञानिक फसलों को जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए शोध कर रहे हैं. भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में से एक सीएसए यूनिवर्सिटी ने गेहूं की एक नई किस्म तैयार की है. जो 70% है पानी कम होने के बाद भी उगेगी और किसानों को बेहतर उत्पादन देगी.

वैज्ञानिक लगातार इस बात के चलते चिंतित हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते फसलों की पैदावार में गिरावट आ रही है. देश की बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए हर साल गेहूं की मांग भी बढ़ रही है पैदावार में गिरावट आने से बढ़ती मांग को घरेलू स्तर पर पूरा कर पाना संभव नहीं होगा. इसलिए वैज्ञानिक नई-नई किस्म की खोज कर रही है जो जलवायु परिवर्तन में भी कम पानी में ज्यादा पैदावार दे.

घट रही पैदावार

गेहूं की नई किस्म को लेकर यूनिवर्सिटी के वीसी आनंद कुमार सिंह ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान के चलते फसलों को पर्याप्त पानी देना आने वाले समय में चुनौती बन रहा है. उन्होंने कहा कि गेहूं प्रमुख फसलों में से एक है. पिछले साल 2023 में देशभर के कुल फूड प्रोडक्शन में गेहूं का 33% यानी 110 मिलियन टन से ज्यादा योगदान था. जिस तरीके से आबादी में इजाफा हो रहा है. गेहूं की साल 2050 तक डिमांड 140 मिलियन टन तक जा सकती है.

गेहूं की एक नई किस्म विकसित

यूनिवर्सिटी द्वारा गेहूं की एक नई किस्म को विकसित किया गया है. जो कम पानी में भी किसानों को अच्छा पैदावार दे सकती है. लगातार शोध में यह पाया गया कि नई प्रजाति में सिर्फ दो बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ेगी और पैदावार भी अधिक होगी. ट्रेडिशनल तकनीक से तैयार की गई इन दोनों किस्म को K0307 और K9162 किस्म के बीजों को क्रॉस ब्रीडिंग से बनाया है. यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई इस किस्म को पकाने के लिए चार महीनों का समय लगता है.

उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में देश में प्रति हेक्टेयर 3.5 टन पैदावार होती है. परंतु इस प्रजाति से गेहूं की पैदावार बढ़कर प्रति हेक्टेयर 5.5 टन तक पहुंच जाएगी. इस नई प्रजाति में बे मौसम बारिश और ओलो का काम असर पड़ेगा. और यह काम नाइट्रोजन वाले उर्वरक में भी उगने में सक्षम है. गेहूं की यह नई किसम किसानों की आमदनी डबल करने में सहायक साबित होगी.