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MP के किसान ने संरक्षित रखी देसी धान की 150 किस्में, कम खर्च में बढ़िया उत्पादन

देसी बीजों के प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। लेकिन कई किसान ऐसे हैं, जो आज भी इन परंपरागत बीजों को सहेजने का काम कर रहे है। आज हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बताने वाले हैं
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MP के किसान ने संरक्षित रखी देसी धान की 150 किस्में, कम खर्च में बढ़िया उत्पादन

DESI DHAN KA BEEJ : कुछ साल पहले किसान देसी धान की खेती करते थे। जिसकी बात ही अलग होती थी। देसी धान के किस्म को शानदार स्वाद और पोषण युक्त माना जा सकता है। इन किस्म में भरपूर मात्रा में आयरन और जिंक भी मिलता था। लेकिन अब समय बदल चुका है और देसी बीज को बोने की परंपरा पुरानी होती जा रही है। क्योंकि अब इनका स्थान हाइब्रिड बीजों ने ले लिया है। 

देसी बीजों के प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। लेकिन कई किसान ऐसे हैं, जो आज भी इन परंपरागत बीजों को सहेजने का काम कर रहे है। आज हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बताने वाले हैं, जिन्होंने 150 किस्मों की परंपरागत देसी धान के बीजों का संग्रहण किया हुआ है। चलिए जानते है इनकी कहानी 

देसी 150 वैरायटी में धान का बीज 

आज हम आपको मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव के किसान राजकुमार चौधरी की कहानी बताने वाले है। इन्होंने परंपरागत देसी किस्म की 150 धान की प्रजातियां का संरक्षण किया हुआ है। उन्होंने बताया कि साल 2013 से देसी धान के बीजों का संरक्षण कर रहे है। 

किसान राजकुमार चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने 150 देसी धान की परंपरागत किस्मों का संरक्षण किया हुआ है। जो कि में उनके बड़े-बूढ़े खेत में लगाया करते थे। उन्होंने कई खास प्रजाति की धान ककरी, चिपड़ा, पांडी, सफरी जैसी खास किस्मों का संरक्षण कर रखा है। 

उन्होंने बताया कि पुरातन काल से चली आ रही इन किस्मों को सुरक्षित करने का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने बताया कि वह है, कई सालों से इन्हें लगाते आ रहे हैं। लेकिन हाइब्रिड धान को हर 2 साल बाद बदलना पड़ता है। जिसकी वजह से आज की खेती में खर्च बढ़ गया है। 

कम खर्च में शानदार पैदावार 

देसी धान की परंपरागत किस्म को लगाने का खर्च काफी कम पड़ता है। क्योंकि हर साल किसान अपनी फसल को अगले साल बीज के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। इन किस्म के लिए हर बार बाजार से बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि किसान अपनी फसल को ही बार-बार बीज के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। 

हाइब्रिड किस्म में रासायनिक खाद के साथ साथ महंगे महंगे उर्वरक इस्तेमाल किए जाते हैं। जिससे किसान को काफी आर्थिक नुकसान होता है। लेकिन देसी बीजों का इस्तेमाल करने से इनका खर्च काफी कम हो जाता है। इन किस्म के लिए गोबर की खाद या फिर देसी जैविक खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। कीटनाशकों का इस्तेमाल किए बिना जबरदस्त उत्पादन लिया जा सकता है। 

किसान हो रहे आकर्षित 

उन्होंने बताया कि वह हर साल 10 किस्म के धान की वैरायटी बढ़ा रहे हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने बताया कि हर साल 20–30 किसान देसी धान की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके लिए वह समय-समय पर किसानों से मिलते रहते हैं और उन्हें देसी धान की ओर आकर्षित कर रहे हैं।