bank cheque bounce : चेक बाउन्स मामले में किस समय जाना पड़ता है जेल, सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश
cheque using tips : चेक से भुगतान करने वाले के लिए समस्या तब उत्पन्न होती है जब चेक बाउंस हो जाता है। चेक बाउंस को अपराध माना जाता है, जिससे जेल की सजा भी हो सकती है, लेकिन यह नहीं है कि चेक बाउंस होते ही सीधे जेल हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में बताया है कि चेक बाउंस के मामले में कब जेल होती है। हर चेक उपयोगकर्ता के लिए इस जानकारी का होना आवश्यक है।

The Chopal, cheque using tips : जब किसी को चेक दिया जाए तो चेक काटते समय अपने खाते में उपलब्ध राशि का ध्यान अवश्य रखें। यदि बैंक खाते में यह राशि चेक पर लिखी गई राशि से कम है, तो चेक बाउंस हो जाएगा। हालांकि चेक बाउंस होने के अन्य कई कारण भी हो सकते हैं।
यह ध्यान रखें कि चेक बाउंस होने पर जुर्माना लग सकता है और जेल भी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया है कि आरोपी को कब तक जेल नहीं होती। आइए इस विषय में कानूनी प्रावधानों के बारे में जानते हैं।
चेक जारी करने वाले को अवसर मिलता है-
चेक बाउंस के मामलों में जुर्माना या जेल या दोनों की संभावना होती है। चेक बाउंस होने पर आरोपी को दो मौके मिलते हैं। पहले, चेक लेनदार चेक बाउंस होने की सूचना कानूनी नोटिस के माध्यम से चेक जारी करने वाले को देता है। इसमें आरोपी को 15 दिनों के भीतर भुगतान करने का समय मिलता है। यदि आरोपी भुगतान नहीं करता है, तो चेक लेनदार 15 दिनों के बाद 30 दिनों के भीतर अदालत में मामला दर्ज कर सकता है।
इस अधिनियम के तहत मामला चलता है-
चेक बाउंस का मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के तहत चलता है। चेक बाउंस मामलों में अधिकतर सजा छह माह या एक साल की होती है, जबकि अधिकतम सजा दो साल की हो सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अनुसार पीड़ित को मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है, और आरोपी को इसे देने का आदेश दिया जा सकता है। यह मुआवजा राशि चेक की राशि से दोगुनी हो सकती है।
इस स्थिति में होती है जेल-
चेक बाउंस जमानती अपराध की श्रेणी में आता है। चेक बाउंस के मामले में दोषी सिद्ध होने पर अधिकतम सजा दो साल तक हो सकती है। चेक बाउंस के मामले में जब तक अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक आरोपी जेल नहीं जाता। चेक बाउंस के मामलों में सजा होने पर अभियुक्त के बरी होने की संभावना बहुत कम होती है।
अपील करने का अवसर मिलता है-
चेक बाउंस के मामले में यदि किसी को जेल में डाल दिया जाता है, तो सजा को निलंबित करने के लिए अपील की जा सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अनुसार, आरोपी जमानत प्राप्त कर सकता है। यदि आरोपी पर आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो वह धारा 374(3) के तहत सेशन कोर्ट में तीस दिनों के भीतर अपील कर सकता है।
इस धारा के तहत होता है केस-
चेक बाउंस होने पर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 139 के तहत केस दर्ज होता है। 2019 में इस कानून में अंतरिम मुआवजे का भी प्रावधान किया गया। चेक बाउंस का आरोपी अदालत में अपनी पहली पेशी पर शिकायतकर्ता को चेक की राशि का 20 प्रतिशत हिस्सा चुका सकता है।
अंतरिम मुआवजे का भी प्रावधान-
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, इस प्रावधान में संशोधन करते हुए पहली सुनवाई के बजाय अपील के समय अंतरिम मुआवजे का प्रावधान जोड़ा गया। यदि बाद में आरोपी की अपील स्वीकार कर ली जाती है, तो आरोपी को यह राशि प्राप्त होती है।