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NHAI : लिट्टीबेड़ा-रांची एक्सप्रेस वे पर बड़ी गड़बड़ी का मामला हुआ उजागर, क्यू आधी जमीन का हुआ अधिग्रहण

NAHA भी मामले को गंभीरता से लिया है। साथ ही, चेटे में बची हुई जमीन को अधिग्रहण करने के लिए 3 (ए) प्रक्रिया की आवश्यकता बताई गई है। NHAI ने पहले भी इस मुद्दे को उठाया है और रांची के उपायुक्त को पत्र लिखा है।

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NHAI: Case of major irregularities exposed on Littibera-Ranchi Expressway, why half the land was acquired

The Chopal - भारतमाला परियोजना के तहत लिट्टीबेड़ा (ओडिशा) से रांची के सीठियो तक बनने वाले ग्रीन फील्ड कॉरिडोर के भू-अर्जन में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। रांची के नगड़ी क्षेत्र के मौजा चेटे में अभी तक सिर्फ आधी जमीन ली गई है, शेष आधी छोड़ दी गई है। इसलिए इस जमीन की बड़ी खरीद-बिक्री हुई है। आधी जमीन क्यों छोड़ दी गई: जब सड़क निर्माण के लिए जमीन निर्धारित की गई थी, केवल आधी जमीन को अधिग्रहण क्यों किया गया और आधी जमीन को छोड़ दिया गया। 

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आधी जमीन क्यों छोड़ दी गई - 

जब सड़क निर्माण के लिए जमीन निर्धारित की गई थी, केवल आधी जमीन को अधिग्रहण क्यों किया गया और आधी जमीन को छोड़ दिया गया। मुख्य बात यह है कि एक ही परियोजना के लिए एक ही मौजा में आधी जमीन का गजट नोटिफिकेशन किया गया था, न कि आधी जमीन की। NAHA भी मामले को गंभीरता से लिया है। साथ ही, चेटे में बची हुई जमीन को अधिग्रहण करने के लिए 3 (ए) प्रक्रिया की आवश्यकता बताई गई है। NHAI ने पहले भी इस मुद्दे को उठाया है और रांची के उपायुक्त को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि नगड़ी अंचल के चेटे मौजा थाना नंबर 256 में 82 प्लॉट का अधिग्रहण करना है, जबकि केवल 40 प्लॉट का 3 (ए) प्रारूप बनाकर भू-अर्जन कार्यालय को भेजा गया था। भारत सरकार के राजपत्र में भी इसका प्रकाशन हुआ है। अभी तक शेष 42 प्लॉट का 3 (ए) प्रारूप तैयार कर भेजा गया है।

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3(A) क्या है?

3 (ए) अधिग्रहण प्रक्रिया है। इसके अनुसार, केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण जैसे सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि की आवश्यकता को देखते हुए इसे अधिग्रहण करने की घोषणा करती है।

अब रैयतों को अधिक भुगतान करना होगा

NHAI ने यह भी कहा कि एक ही परियोजना में 3 (A) को दो बार प्रकाशित करने से रैयतों की जमीन के मूल्य में बदलाव होगा। जमीन की कीमत बढ़ने पर रैयतों को अधिक भुगतान करना होगा। जमीन की कीमत अक्सर बढ़ती है। रैयतों को अधिक धन देना मुश्किल होगा क्योंकि दूसरी जमीन काफी समय बाद नोटिफिकेशन होगा।

कानून भी आएगा - 

एक ही मौजा में दो अलग रेट होने पर रैयतों में मतभेद होगा। भू-अर्जन में कानूनी बाधा भी होगी। यह प्रश्न उठेगा कि एक ही जगह के लिए अलग-अलग दरें क्यों दी जाती हैं? अगर ऐसा होता है, जिला भू-अर्जन कार्यालय ही इसका उत्तरदायी होगा।