The Chopal

High Court ने बताया , ऐसी बेटी को पिता की संपत्ति में नहीं मिलेगा हिस्सा

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा बेटी का उसकी संपत्ति पर कोई हक नहीं हो सकता, क्योंकि वह भरण-पोषण की हकदार आश्रित नहीं है।
   Follow Us On   follow Us on
High Court said, such a daughter will not get a share in her father's property

The Chopal : दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृत पिता की संपत्ति पर सिर्फ अविवाहिता, विधवा बेटी का ही हिस्सा है। तलाकशुदा बेटी का उसकी संपत्ति पर कोई हक नहीं हो सकता, क्योंकि  वह भरण-पोषण की हकदार आश्रित नहीं है। हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ एक तलाकशुदा महिला की ओर से पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया। पारिवारिक अदालत ने मां और भाई से भरण-पोषण के महिला के दावे को दरकिनार कर दिया था।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 उन आश्रितों के लिए प्रावधान करता है जो भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 1999 में हुई थी। उनके चार आश्रित थे, पत्नी, बेटा और दो बेटियां। महिला का दावा था उसे कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में कोई हिस्सा नहीं दिया गया था। उसने दलील दी कि उसकी मां और भाई उसे इस आश्वासन पर गुजारा भत्ता के रूप में प्रति माह 45,000 देने पर सहमत हुए कि वह संपत्ति में अपने हिस्से के लिए दबाव नहीं डालेगी। उसे सिर्फ नवंबर, 2014 तक नियमित रूप से भरण-पोषण दिया गया, उसके बाद नहीं। महिला के पति ने उसे छोड़ दिया और सितंबर 2001 में उसे तलाक दे दिया गया। दावा किया कि अदालत ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उसे पति से कोई पैसा, गुजारा भत्ता नहीं मिला।

दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, एचएएमए के तहत वह अधिनियम में परिभाषित ‘आश्रित’ नहीं है और इस प्रकार वह अपनी मां और भाई से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है। अदालत ने सही कहा कि महिला को पहले ही  पिता की संपत्ति से हिस्सा मिल चुका था और उसे प्राप्त करने के बाद वह फिर से भाई और मां से भरण-पोषण का कोई दावा नहीं कर सकती थी। अदालत ने कहा कि मां ने पहले ही अपीलकर्ता को आवास उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर ली है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि प्रतिवादियों ने भाई और मां होने के नाते अपीलकर्ता को 2014 तक 45,000 प्रति माह देकर समर्थन भी किया था। 

ऑटो में जीपीएस के फैसले पर कोर्ट पहुंचे चालक

राजधानी में ऑटो में ग्लोबल पोजीशन सिस्टम (जीपीएस) अनिवार्य करने के फैसले का ऑटो चालक विरोध कर रहे हैं। ऑटो चालकों में इसे लेकर रोष है। परिवहन विभाग के अनुसार अगर ऑटो में जीपीएस नहीं लगा होगा तो उनका चालान होगा। इसके साथ ही वाहन की फिटनेस जांच भी नहीं की जाएगी। ऐसे में ऑटो संघ इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए हैं। उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश को ही ऑटो चालक मानेंगे। संघ ने बताया कि ऑटो चालकों के पास जीपीएस लगाने के लिए मोबाइल पर संदेश भेजे जा रहे हैं।  

परिवहन विभाग इस आदेश को सख्ती से लागू करने जा रहा है। बता दें मौजूदा समय में विभाग के अनुसार 95 हजार ऑटो पंजीकृत हैं, वहीं 9 हजार के लगभग काली पीली टैक्सी हैं। संघ का कहना है कि ऑटो सुरक्षा के लिहाज से खुला वाहन है। इसमें किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने ऑटो में जीपीएस की छूट दे रखी है। उसके बावजूद दिल्ली सरकार मनमानी का आदेश दे रही है। उनका कहना है कि ढ़ाई साल से सरकार सो रखी थी, जो अब इस आदेश को लागू कर रही है। वहीं, परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह राज्य सरकार पर निर्भर  है कि वह इस आदेश को लागू करे या नहीं। 

दिल्ली ऑटो रिक्शा संघ के महामंत्री राजेंद्र सोनी ने कहा कि जीपीएस सिस्टम वाहनों में अब तक चल नहीं रहा है। केवल एक दिखावा है। वह कहते हैं कि वह इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। वह केवल कोर्ट का ही फैसला स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि इससे केवल जीपीएस लगाने वाली निजी कंपनियों को फायदा है। 

वहीं, ऑल दिल्ली ऑटो टैक्सी ट्रांसपोर्ट यूनियन के अध्यक्ष किशन वर्मा ने कहा कि ऑटो से जीपीएस व्यवस्था को पूरी तरह से हटाना चाहिए, अगर उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो वह सड़कों पर बड़े स्तर पर प्रदर्शन करेंगे।

Also Read : DOPT Promotion Rules: ये केंद्रीय कर्मचारी किसी भी हाल में नहीं उठा सकेंगे प्रमोशन का लाभ