Supreme Court : क्या औलाद से मां-बाप ले सकते है जमीन वापिस, सुप्रीम कोर्ट का आया बड़ा फैसला
Supreme Court : प्रोपर्टी से जुड़े नियमों और कानूनों को लेकर आम लोगों में जानकारी की कमी होती है। यही कारण है कि आज हम आपको इस खबर में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए फैसले के बारे में बताते हैं कि क्या माता-पिता औलाद से अपनी संपत्ति वापस ले सकते हैं या नहीं।

The Chopal, Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है कि माता-पिता से उपहार में संपत्ति पाने वाले बच्चों से संपत्ति वापस ली जा सकती है अगर वे उनकी देखभाल नहीं करते हैं। 2007 के बुजुर्गों के हितों की रक्षा के कानून की व्याख्या करते हुए यह निर्णय लिया गया। मध्य प्रदेश (MP) के छतरपुर मामले में, कोर्ट ने मां की ओर से बेटे को दी गई गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया और बेटे को 28 फरवरी तक अपनी संपत्ति मां को सौंपने का आदेश दिया।
बुजुर्गों की सहायता के लिए कानून बनाया गया है—
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बेंच, जिसमें जस्टिस सी टी रविकुमार और संजय करोल शामिल हैं, ने कहा कि 2007 के मामलों में अदालतों को बुजुर्गों की सहायता के उद्देश्य से सजग रहना चाहिए। यदि गिफ्ट डीड में भविष्य में संतान द्वारा माता-पिता का ख्याल रखने का उल्लेख नहीं हो, तो लापरवाह संतान को संपत्ति पर अधिकार नहीं मिल सकता।
कानून में क्या कहा गया है?
2007 में बनाए गए कानून की धारा 23 कहती है कि अगर कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति किसी को उपहार (गिफ्ट) या किसी और तरीके से देता है जिसमें संपत्ति पाने वाला वरिष्ठ नागरिक (senior citizen) की देखभाल करेगा, तो ऐसा नहीं होने पर यह धोखाधड़ी या धमकी से हुआ है। इस ट्रांसफर को ट्रिब्यूनल रद्द कर देगा।
"बेटे ने देखभाल का वादा किया"—
1968 में छतरपुर की रहने वाली उर्मिला दीक्षित ने संपत्ति खरीद ली। 7 सितंबर 2019 को, गिफ्ट डीड के माध्यम से उन्होंने अपने बेटे सुनील शरण दीक्षित को दिया। 4 दिसंबर 2020 को उन्होंने छतरपुर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट से शिकायत की कि उनके बेटे ने उन पर और उनके पति पर और अधिक संपत्ति हासिल करने के लिए हमला किया। उर्मिला दीक्षित ने बताया कि बेटे ने वचन पत्र दिया था कि वह उनकी देखभाल करेगा, संपत्ति ट्रांसफर करने से पहले। इस अनुरोध पर एसडीएम ने गिफ्ट डीड को रद्द करने का आदेश दिया।
"मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का बेटे का फैसला"—
सुनील शरण दीक्षित ने कई फोरमों में अपील की। उसने दावा किया कि उसकी मां ने फर्जी वचन पत्र पेश किया था। लेकिन एसडीएम का आदेश हर फोरम पर जारी रहा। 31 अक्टूबर 2022 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने अंततः उसके पक्ष में निर्णय दिया। डिवीजन बेंच ने कहा कि माता की सेवा गिफ्ट डीड में लिखा होना चाहिए था अगर ऐसा था। गिफ्ट डीड में इस शर्त का उल्लेख नहीं है, इसलिए बेटा ही संपत्ति का मालिक होगा।
"हाईकोर्ट ने फैसला पलट नहीं दिया"—
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के निर्णय को पलट दिया है। 2 जनवरी को कोर्ट ने 2007 में बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का महत्व बताया। कोर्ट ने बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए 2007 के मेंटनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट की स्पष्ट व्याख्या की, जैसे कि एस वनिता बनाम बेंगलुरु डिप्टी कमिश्नर और सुदेश छिकारा बनाम रमती देवी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून वरिष्ठ नागरिकों को उपेक्षा से बचाने और उनके अधिकारों को बचाने के लिए बनाया गया था। ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि संपत्ति पाने वाले को उससे हटाने का आदेश दे जब एक बुजुर्ग व्यक्ति उचित देखभाल की शिकायत करता है. मामले की जांच के बाद ट्रिब्यूनल को यह अधिकार मिलता है। एसडीएम ने इस मामले में भी सही आदेश दिया था। हाई कोर्ट (9 हाई कोर्ट) ने उसे फिर से सही नहीं किया।