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Supreme Court : कर्जे वाली प्रोपर्टी खरीदने वाले हो जाएं सतर्क, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

Property Disputes मामले हर दिन कोर्ट में आते रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कर्ज में डूबी संपत्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें कहा गया है कि कर्ज में डूबी संपत्ति खरीदने वालों को अब सावधान रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में खबर में जानें।

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Supreme Court : कर्जे वाली प्रोपर्टी खरीदने वाले हो जाएं सतर्क, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

The Chopal, Court Decision : Property की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ इस पर होने वाले विवाद भी लगातार बढ़ रहे हैं। देश भर में प्रॉपर्टी को लेकर कई नियम और कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, जिससे प्रॉपर्टी से जुड़े विवाद बढ़ रहे हैं। आम लोग जिस संपत्ति पर विवाद होता है, उससे दूर भागते हैं। लेकिन इसी तरह की संपत्ति खरीदने वाले कुछ डेयरिंग हैं। इसलिए कि रियल एस्टेट डील सस्ते में हो जाए। यदि आप भी ऐसा सोचते हैं, तो सावधान रहिए। आप किसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी या बैंक से किसी संपत्ति पर लोन का विवाद चल रहा है तो उससे दूर रहें। यदि आप नहीं करेंगे तो बिल्डर को कोई नुकसान नहीं होगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐसा फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्ज में डूबी संपत्ति खरीदने वाले Agreement To Sale (ATS Holder) को कोई राहत नहीं दी जा सकती। वह बैंक का मूल कर्जदार नहीं है, भले ही वह संपत्ति का पूरा मूल्य चुकाने को तैयार हो।
 
क्या मामला है?

बिल्डर इस मामले में शामिल है। उसने राज्य बैंक ऑफ हैदराबाद से एक बहु-स्टोरी घर बनाने के लिए लोन लिया था। उसे वापस लाने में वह असफल रहा। इसके बाद, Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002 (SARFAESI Act) की धारा 13 के अनुसार बैंक ने लोन की रिकवरी शुरू की। साथ ही, धारा 13(4) के तहत मकान प्रोजेक्ट के सभी फ्लैट और अन्य संपत्ति को जब्त कर लिया गया। बिल्डर ने इस मुकदमे को Debt Recovery Tribunal (DRT) में चुनौती दी। DRT ने बिल्डर को कहा कि वह इच्छुक खरीदारों की सूची लाए जो उसके फ्लैट खरीदना चाहते हैं। ताकि कर्ज चुकाया जा सके। बिल्डर ने बैंक से एग्रीमेंट किया कि फ्लैट खरीदार के साथ कोई भी एग्रीमेंट बैंक से अनुमति लेकर ही करेगा। लेकिन बिना बैंक से अनुमति के, बिल्डर ने खरीदार से Agreement to Sell (ATS) कर दिया।

बैंक ने संपत्ति बेच दी

इस बीच, बैंक ने उसे नीलाम करने का नोटिस भेजा। बिल्डर ने डीआरटी को इसके खिलाफ शिकायत दी, लेकिन डीआरटी ने बिल्डर की शिकायत खारिज कर दी और एटीएस को व्यर्थ बताया। इस बीच, बैंक ने संपत्ति को नीलाम कर दिया। नीलाम में संपत्ति खरीदने वाले व्यक्ति ने बीस प्रतिशत राशि जमा की। एटीएस होल्डर ने इस पर आंध्र हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर नीलामी नोटिस को चुनौती दी। याचिका में उसने यह नहीं बताया कि संपत्ति पहले से ही बेची गई है। हाईकोर्ट ने नीलामी को रद्द कर दिया और कहा कि एटीएस होल्डर को पूरा पैसा देने पर संपत्ति दी जाएगी। होल्डर ने धन जुटाया। नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले व्यक्ति ने बैंक के साथ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बीते दो मई को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार (Justice M.R. Shah and Justice C.T. Ravikumar) ने इस मामले पर फैसला सुनाया। तीसरे खरीदार के पक्ष में हाईकोर्ट का आदेश पीठ ने निरस्त कर दिया। 

पीठ ने कहा कि सरफेसी एक्ट, 2002 की धारा 13 (4) के तहत बैंक अपने ऋण की वसूली कर रहा था, इसलिए हाईकोर्ट (Court Decision) को नीलामी रोकने और एग्रीमेंट टू सेल होल्डर को फ्लैट देने का आदेश नहीं देना चाहिए था। पीठ ने निर्णय दिया कि एटीएस होल्डर नहीं, बल्कि बिल्डर ही इस कार्रवाई को रोकने की कोशिश कर सकता है यदि वह धारा 13 (8) के तहत योजना की पूरी रकम देने को तैयार है। 

पीठ ने निर्णय दिया कि एटीएस होल्डर को किसी भी अदालत ने इस बिना पर गिरफ्तार नहीं कर सकता कि वह कर्ज का पूरा भुगतान कर रहा है। पीठ ने भी कहा कि बैंक और डीआरटी के आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट याचिका नहीं दायर की जा सकती क्योंकि सरफेसी एक्ट की धारा 17 इसके लिए राहत देती है। सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले व्यक्ति के पक्ष में निर्णय दिया।