Supreme Court Decision : तलाक के बाद पत्नी कितना मांग सकती है गुजरा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने बताई लिमिट
Supreme Court : पति-पत्नी के रिश्ते में बहुत प्यार के साथ झगड़े भी होते हैं। लेकिन कभी-कभी यह विवाद में बदल जाता है और तलाक तक पहुंच जाता है। पत्नी को तलाक के बाद पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार मिलता है। वह न्यायालय में भी अपील कर सकती है, लेकिन इस गुजारे भत्ते की सीमा क्या है? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के बाद पत्नी द्वारा मांगे जाने वाले गुजारा भत्ता की सीमा निर्धारित की है; आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

The Chopal, Supreme Court : पति-पत्नी के रिश्ते, जो विश्वास और प्यार पर आधारित हैं, जितने मजबूत होते हैं, उतने ही नाजुक भी होते हैं. विवादों में उनकी मजबूती जल्दी टूट जाती है। विवादों के बढ़ने पर पति-पत्नी का रिश्ता तलाक की कगार पर आ जाता है, और कई बार तलाक झट से हो जाता है (SC निर्णय divorce case)। ऐसा होने पर पत्नी गुजारा भत्ता मांगती है। कोर्ट में मामला पहुंचने पर पति को पत्नी के भरण पोषण (alimony demand) के लिए धन देने को कहा जाता है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजारे भत्ते की सीमा निर्धारित की है; आइए जानते हैं इसकी सीमा क्या है:
क्या मामला है—
यदि कोई व्यक्ति बहुत धनवान है, तो शादी करना और तलाक लेना काफी महंगा हो सकता है। हाल ही में एक भारतीय मूल के अमेरिकी व्यक्ति का मामला सामने आया, जिसने 2020 में अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये की भरण पोषण सीमा (alimony limit) दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने फिर उसकी दूसरी पत्नी को 12 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया। यह घटना इस बात का उदाहरण है कि अमीर लोगों के लिए कानूनी विवाद बहुत महंगा हो सकता है और इसके परिणाम क्या हो सकते हैं।
महिला ने अपना दावा जताया—
एक व्यक्ति की दूसरी शादी महज एक साल में टूट गई। जुलाई 2021 में उसने दूसरी शादी की, लेकिन उनके रिश्ते में जल्द ही समस्याएं आ गईं। पति ने सुप्रीम कोर्ट में विवाह को समाप्त करने की मांग की थी। कोर्ट में पत्नी ने कहा कि उसे अपने पति की पहली पत्नी के समान आर्थिक सहायता, यानी पालन पोषण, मिलना चाहिए। महिला के दावे पर न्यायाधीशों ने आपत्ति जताई, खासकर संपत्ति और भत्ता के मुद्दे पर। महिला की मांग पर कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी।
कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
जस्टिस नागरत्ना ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि पत्नी द्वारा संपत्ति के बराबर भरण-पोषण की मांग करना उचित नहीं है (महिलाओं की अलीमिया नियम)। इस मामले में फैसला देने के लिए जस्टिस नागरत्ना ने 75 पन्नों की एक रिपोर्ट भरी थी। उनका मानना है कि लोग अक्सर अपने साथी की संपत्ति, स्थिति और आय का खुलासा करते हैं, जिससे वे बहुत पैसा मांगते हैं। उनका सवाल था कि ऐसी मांग क्यों नहीं की जाती जब पति-पत्नी की संपत्ति अलग हो जाती है? सुप्रीम कोर्ट (SC decision on alimony) की बेंच ने कहा कि कानून मुख्य रूप से पत्नी की गरिमा, आवश्यकताओं और सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाया गया है, न कि संपत्ति के बराबर पैसे देने के लिए।
यह प्रेरित करना असंभव है—
एक न्यायाधीश ने कहा कि पत्नी को पति से अलग होने के बाद भी उसी तरह का समर्थन मिलना चाहिए, जो विवाह के दौरान था। सु्प्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने भी कहा कि पति के जीवन में बदलाव आ सकता है और अगर वह बेहतर होता है, तो उसे पत्नी की पिछली स्थिति पर दबाव नहीं डाला जा सकता। यह सवाल उठाया गया कि क्या पत्नी भी अपने पति की मुश्किलों को समझेगी और उसी प्रकार के अधिकारों की मांग करेगी (महिलाओं के अधिकारों के विवाह में)।
महिलाओं को भी यह समझना होगा-
न्यायमूर्ति बेंच ने कहा कि महिलाओं को यह समझना चाहिए कि कानून उनके कल्याण के लिए बनाए गए हैं, न कि उनके पतियों को सजा देने, धमकाने या उनसे पैसे वसूलने के लिए। कानून की आलोचना का उद्देश्य सिर्फ उनकी भलाई है और इसका गलत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। महिलाओं को समझना चाहिए कि कठोर कानूनों का लक्ष्य केवल उनके अधिकारों की रक्षा करना है, न कि पारिवारिक रिश्तों को नुकसान पहुंचाना है।