supreme court decision : पति को छोड़कर की पड़ोसी से शादी करके उससे मांगा गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
SC decision : पति-पत्नी के रिश्ते में अविश्वास की भावना आते ही दरार पड़ने लगती है और कई बार उनकी खींचतान इतनी बढ़ जाती है कि दोनों तलाक लेकर अलग रहने लगते हैं। इसके बाद, कभी-कभी किसी अन्य पार्टनर के साथ भी संबंध बन जाते हैं और उससे भी अलग होने की स्थिति आती है, तो अक्सर पत्नी को गुजारा भत्ता (women's alimony rights) देने की मांग की जाती है, जिसे महिलाओं के अलीमिया अधिकार कहा जाता है। ऐसे ही एक मामले में, न्यायालय ने पत्नी की ओर से दूसरे पति से गुजारा भत्ता मांगे जाने पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। आइये कोर्ट के इस फैसले को जानते हैं।

The Chopal, SC decision : साथ ही, कई बार पत्नी अपने पति से तलाक लेने के बजाय किसी और के साथ रहने लगती है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता नहीं है कि अगर एक व्यक्ति से भी रिश्ता टूट जाए और पत्नी दूसरे पति से भरण-पोषण (mantinance allowance rights) की मांग करे तो क्या उसे मिलेगा। एक महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। यह निर्णय भी महिलाओं को उनके निजी जीवन से जुड़े कानूनी अधिकार देता है।
इस मामले में—
सुप्रीम कोर्ट में पत्नी को गुजारा भत्ता दिए जाने का मामला आया, जिसमें एक पत्नी (married women alimony rights) ने अपने पहले पति को छोड़कर अपने पड़ोसी से शादी कर ली, फिर अपने पड़ोसी पति को छोड़कर गुजारा भत्ता की मांग की (SC decision on alimony)। 1999 में पहले पति से शादी करने वाली महिला ने 2000 में एक बच्चे को जन्म दिया।
2005 में, उसने अपने पहले पति से अलग होकर दो दिन बाद अपने पड़ोसी से शादी कर ली। 2012 में, महिला का दूसरे पति से भी रिश्ता टूट गया और जीवन यापन के लिए आर्थिक सहायता यानी गुजारा भत्ता की मांग की। अब सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में महिला को अपने दूसरे पति से भरण-पोषण करने का अधिकार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला दूसरे पति से गुजारा भत्ता ले सकती है, भले ही उनकी पहली शादी कानूनी तौर पर मान्य हो। अदालत ने कहा कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत दूसरे पति से भरण-पोषण (अलिमोनिया अधिकार) देने से पत्नी को मना नहीं किया जा सकता क्योंकि यह पति की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है।
दो जजों की पीठ ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य महिला को उसका अधिकार दिलाना है और इसे पति के दायित्वों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। यह फैसला भरण-पोषण से संबंधित महत्वपूर्ण सिद्धांतों को स्थापित करता है और महिलाओं के अधिकारों को (mantinance allowance rights for women) मजबूत करता है।
पत्नी को इतना मासिक भुगतान मिलेगा—
13 अप्रैल 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने 5000 रुपये का पहले मासिक भत्ता रद्द कर दिया था। उस मामले में हाई कोर्ट ने कहा कि महिला को उस व्यक्ति की पत्नी नहीं माना जा सकता क्योंकि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई थी। महिला ने इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने महिला को बहुत बड़ी राहत देते हुए उसके पक्ष में फैसला दिया। महिला को इस निर्णय से दोनों कानूनी मान्यता और आर्थिक सहायता मिली।
ऐसे पहले पति से जुड़े रिश्ते में खटास—
इस मामले में शामिल महिला हैदराबाद की रहने वाली है और 30 अगस्त, 1999 को उसकी पहली शादी हुई थी। 15 अगस्त, 2000 को एक साल बाद उसका बेटा हुआ। दंपति भी कुछ साल अमेरिका में रहा। पति-पत्नी का विवाद 2005 में शुरू हुआ जब वे अमेरिका से वापस आए। इसके बाद दोनों ने 25 नवंबर, 2005 को एक समझौता किया, जिससे उनकी शादी खत्म हो गई। इस बीच, महिला और उसके बेटे को लेकर कानूनी मुद्दे भी उठे। यह मामला बहुत जटिल था और दोनों के संबंधों की समाप्ति के बाद कई व्यक्तिगत और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
इस दिन दूसरी शादी हुई—
महिला ने अपने पहले पति से ब्रेकअप के तुरंत बाद अपने पड़ोसी से संपर्क किया, जो बाद में एक रिश्ते में बदल गया। दोनों ने पहले पति से अलग होने के दो दिन बाद ही विवाह कर लिया। रजिस्ट्रार ऑफ मैरिज (Registrar of Marriage) ने शादी को मान्यता दी। उसकी शादी से एक बेटी भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे दोनों के रिश्ते में खटास आ गया और महिला ने भी उसे छोड़ने का निर्णय लिया। 2012 में, महिला ने दूसरे पति से गुजारा भत्ता के नियमों के लिए आवेदन किया। यह मामला दोनों कानूनी और व्यक्तिगत रूप से बहुत जटिल था।
प्रतिवादी जिम्मेदारी से मुकर रहा था-
सुप्रीम कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण बिंदु को उजागर किया कि प्रतिवादी ने महिला के पहले विवाह की पूरी जानकारी रखने के बावजूद दूसरी शादी की और बाद में अपनी जिम्मेदारियों से मुकरने की कोशिश की। महिला ने अपने पूर्व पति के साथ हुए समझौते का दस्तावेज प्रस्तुत किया, जो बताता था कि उनका रिश्ता वास्तव में समाप्त हो गया था। यह सिर्फ एक समझौता था, न कि कानूनी तलाक। अदालत ने इसे "डी फैक्टो अलगाव" माना। यह मानते हुए, कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला दिया और दूसरे पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
कोर्ट ने इन मामलों का हवाला दिया:
न्यायालय ने कहा कि महिला अपने पहले पति से भत्ता नहीं ले रही है, इसलिए दूसरे पति को भत्ता देने में कोई समस्या नहीं है। पीठ ने कुछ महत्वपूर्ण मामलों, जैसे बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे (2014) और द्वारिका प्रसाद सतपथी बनाम बिद्युत प्रभा दीक्षित (1999), में दूसरी पत्नी को भत्ता (patni ka bharan poshan ka adhikar) दिया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि भत्ते के मामलों में विवाह का प्रमाण इतना कठोर नहीं होना चाहिए जितना कि भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (द्विविवाह) में कहा गया है। इससे पता चला कि भत्ते की स्थिति में विवाह के प्रमाण की आवश्यकता बदलती रहती है।
फैसले के दौरान न्यायालय की टिप्पणी—
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी ने शादी का लाभ उठाया, लेकिन जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश की, इसलिए महिला को पांच हजार मासिक भत्ता पुनः बहाल किया। इस निर्णय को समाज में बेघर या बेसहारा महिलाओं को न्याय दिलाने में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया। कोर्ट ने बेटी को पहले से मिल रहे भत्ते को भी सुरक्षित रखा। यह फैसला उन महिलाओं (Patni ko bharan poshan kab milta hai) के लिए आशा की किरण है जो कानूनी पेचिदगियों के कारण अपने अधिकारों से वंचित रह गई हैं। महिलाओं को इस निर्णय से अपने अधिकारों की रक्षा करने की प्रेरणा मिली है।