Property Ownership : केवल वसीयत से नहीं बन सकते प्रॉपर्टी के मालिक, सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला
Property Rights :पारिवारिक सहमति से प्रोपर्टी पर हक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता रहता है, लेकिन अक्सर विवाद कोर्ट तक पहुंचता है। ऐसे में किसी प्रोपर्टी पर हक व अधिकार (property rights in law) निर्धारित किए जाते हैं। कई लोगों को अक्सर यह भी सवाल रहता है कि वसीयत के अधिकार पर संपत्ति का स्वामित्व मिल सकता है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने इस पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। आइये इस निर्णय को खबरों में जानते हैं।

The Chopal, Property Rights : प्रोपर्टी के मामलों में वसीयत महत्वपूर्ण है। ताकि परिवार में कोई विवाद न हो, बहुत से लोग अपने मरने से पहले ही संपत्ति की वसीयत बना लेते हैं। यही कारण है कि बहुत से लोगों का मानना है कि वसीयत प्रोपर्टी पर अधिकार (property ownership) देती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ही इस बात में कितनी सच्चाई है पता चल सकता है। कोर्ट ने निर्णय दिया कि वसीयत ही किसी प्रोपर्टी (property knowledge) का मालिक बना सकती है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पारित किया-
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत और अटॉर्नी की शक्ति के माध्यम से मालिकाना हक (property owner's rights) का मूल्यांकन किया है। कोर्ट ने कहा कि अटॉर्नी की वसीयत और शक्ति किसी भी संपत्ति में अधिकार देने के दस्तावेज (property documents) के रूप में वैध नहीं हैं।
यह वसीयतकर्ता की मौत से पहले ही लागू होने की बात कहने के समान है। कोर्ट वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद मामले की स्थिति को देखते हुए वसीयत अधिकारों पर निर्भर करता है। यदि वसीयतकर्ता जीवित रहता है, तो वसीयत को बदल दिया जा सकता है। हां, वसीयतकर्ता के दबाव में वसीयत लिखवाई जा सकती है। इसे लेकर वसीयत को कोर्ट में चैलेंज भी किया जा सकता है अगर सुबूत है।
इस मामले में दिया गया अंतिम फैसला-
घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी मामले में अटॉर्नी के अधिकारों और वसीयत को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह निर्णय दिया है। कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी के बारे में कहा कि यह दस्तावेज पाने वाले को मालिकाना हक केवल पावर ऑफ अटॉर्नी के दस्तावेज से नहीं मिलता।
इन दस्तावेजों को सबसे महत्वपूर्ण माना गया था—
इस मामले में, दो जजों की पीठ ने निर्णय दिया कि पॉवर ऑफ अटार्नी और वसीयत के दस्तावेजों को मालिकाना हक के कागजों के रूप में मान्यता देना कानून का उल्लंघन है।
ये दस्तावेज मालिकाना हक के लिए आवश्यक रजिस्ट्री और नामांतरण नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि सौ रुपये से अधिक कीमत वाली संपत्ति में अधिकार और स्वामित्व केवल रजिस्ट्री से प्राप्त हो सकते हैं। वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के दस्तावेजों से नहीं
वसीयत पर कोर्ट की टिप्पणी:
कोर्ट ने कहा कि वसीयत (property will) के तहत संपत्ति पर मालिकाना हक को लेकर वसीयत लेखक की मृत्यु के बाद ही वसीयत लागू हो सकती है। यदि वसीयतकर्ता जीवित है तो वसीयत प्रतिवादी को कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता, यानि संपत्ति के अधिकारों को अपनी इच्छा से नहीं दिया जा सकता।
अटॉर्नी की शक्ति के दस्तावेज पर टिप्पणी-
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीठ की शक्ति के दस्तावेज पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने निर्णय दिया कि इस मामले में अपील करने वाले ने प्रतिवादी को जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (General Power of Attorney) दी थी। यह दस्तावेज प्रतिवादी के पास है। उसने प्रतिवादी को संपत्ति का मालिकाना हक नहीं दिया है और न तो मुख्तारनामे के अधिकारों के आधार पर सेल डीड बनाया है।
अटॉर्नी के अधिकारों की शक्ति सीमित है-
कोर्ट ने कहा कि पावर ऑफ अटॉर्नी की ओर से कोई और दस्तावेज नहीं बनाने पर दस्तावेज बेकार माना जाता है। उसे यानी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर कोई संपत्ति नहीं दी जा सकती। इस दस्तावेज में संपत्ति पर अधिकार सीमित हैं।
रजिस्ट्री से मालिकाना हक मिलता है—
पावर ऑफ अटॉर्नी, यानी मुख्तारनामा, एक समझौता है जो संपत्ति बेचने का अधिकार देता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई फैसलों में सहमति जताई है। मालिकाना हक पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई निर्णय दिए हैं। इनमें स्पष्ट किया गया है कि किसी अचल संपत्ति को एक पंजीकृत हस्तांतरण विलेख (what is Registered Conveyance Deed) यानी रजिस्ट्री के जरिये मालिकाना हक प्राप्त किया जा सकता है। इसी के जरिये प्रोपर्टी को किसी अन्य के नाम ट्रांसफर किया जा सकता है। नामांतरण या दाखिल खारिज भी इसके लिए जरूरी होता है।