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महँगे टमाटर व हरी सब्जियों के बाद अब दालों में दिखेगा महंगाई का तांडव, इस कारण होंगी दाल महंगी

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The Chopal, व्यापार डेस्क, नई दिल्ली: किसने सोचा था, जिस टमाटर को उगाने में कोई ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती, उसका प्रोडक्शन कम होगा और कीमतें 150 रुपये प्रति किलो पहुंच जाएंगी. अब इसका प्याज और आलू पर भी साफ देखने को मिल रहा है और दूसरी सब्जियों के दाम भी आसमान पर पहुंच गए हैं. ऐसे अगला नंबर दालों का आने वाला है. जी हां, अब दालें देश में बवाल की शक्ल में सामने आने वाली है. जिनकी बुवाई 31 से 60 फीसदी तक कम हुई है. इनके दाम भी डबल सेंचुरी लगाने को तैयार बैठीं हैं. इसका कारण भी है दालों के दाम में कुछ दिनों से लगातार तेजी बनी हुई है.

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कहा ये जा रहा है अरहर और उड़द राज्यों में पैदा होती है, वहां बारिश 30 से 40 ही मानसून आ पाया है. यही वजह है कि दालों को लेकर अभी से चिंता होनी शुरू हो चुकी है. आरबीआई महंगाई को कम करने की जो मुहिम छेड़ चूंकी हैं, उसके आगे आने वाले 6 महीने काफी चुनौतिपूर्ण होने जा रहा है. बुवाई कम तो प्रोडक्शन हुआ और प्रोडक्शन कम होने मार्केट में सप्लाई की जरुरत होंगी तो महंगाई तो बढ़ेगी तो महंगाई दर में इजाफा देखने को मिलेगा जो मई में 25 महीने के लोबर लेवल पहुंच गई थी. ऐसे में उन परिस्थितियों को मथना काफी जरूरी है, जिसने दालों की महंगाई में इजाफा कर दिया है.

65 फीसदी बुवाई हुई ही नहीं

भारत के अधिकांश हिस्सों में मानसूनी बारिश में तेजी के बावजूद, शुक्रवार को समाप्त सप्ताह तक खरीफ फसलों का रकबा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले लगभग 8.6 फीसदी देखने को मिला. चावल, दालें जैसे अरहर और उड़द, सोयाबीन जैसी खरीफ फसलों का रकबा काफी कम हो गया है. लेकिन, पिछले महीने के मिड से मानसून की बारिश में जोरदार बढ़ोतरी देखी जा रही है, उम्मीद है कि आने वाले हफ्तों में कुछ प्रमुख फसलों के संबंध में रकबे में साल-दर-साल अंतर कम हो जाएगा. इसके अलावा, यदि बुआई समय पर हो जाती है तो बुवाई की कमी काफी ​हद तक पूरी हो जाएगी. कुल मिलाकर, ख़रीफ फसलें लगभग 101 मिलियन हेक्टेयर में होती हैं. शुक्रवार तक 35.34 मिलियन हेक्टेयर में बुआई पूरी हो चुकी थी (लगभग 35 फीसदी) इसलिए जुलाई के शेष सप्ताहों और अगस्त में भी बारिश का जरूरी हो चली है.

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दालों का कम हो सकता है प्रोडक्शन

व्यापारियों के अनुसार, अरहर या तुअर जैसी कुछ फसलों के लिए, बाजार ने पहले ही पैदावार में गिरावट और कीमतों में कमी ना होने की बात माननी शुरू कर दी है. इससे फूड इंफ्लेशन को कम रखने के प्रयासों पर असर पड़ सकता है क्योंकि अरहर की दाल रोजमर्रा में यूज होने वाली प्रमुख वस्तुओं में से एक है. शुक्रवार तक अरहर का रकबा सालाना आधार पर लगभग 60 फीसदी कम यानी 0.6 मिलियन हेक्टेयर था, जोकि पिछले साल की समान अवधि में 1.5 मिलियन हेक्टेयर देखने को मिला था. अगर बात उड़द की दाल की करें तो रकबा पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 31.43 फीसदी कम देखने को मिला है. इस साल का रकबा 0.48 मिलियन हेक्टेयर है जो पिछले साल 0.7 मिलियन हेक्टेयर था. वहीं दूसरी ओर चावल की बात करें तो 23.8 फीसदी यानी साल 2022 में 7.1 मिलियन हेक्टेयर था, इस साल रकबा 5.41 मिलियन हेक्टेयर देखने को मिला है. चावल का रकबा मुख्य रूप से पंजाब, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कम हुआ है. पंजाब में, जो एक प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है, जहां पर बुवाई थोड़ी ठीक—ठाक देखने को मिली है.

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