सुमेरपुर मंडी में MSP भाव ज्यादा होने पर भी फसल नहीं बेच रहे किसान, जानिए वजह
Rajasthan News : राजस्थान में महाराजा उम्मेदसिंह कृषि उपज मंडी में सरकारी खरीद केंद्र पर किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यापारियों से ज्यादा दिया जा रहा है। जिसके बाद भी किसान अपनी फसल प्राइवेट व्यापारियों को बेच रहे है। किसान मंडी में 95 हजार बोरी चना और सरसों प्राइवेट दुकानों पर बेच चुके है।

Sumerpur Mandi News : राजस्थान के सुमेरपुर की महाराजा उम्मेदसिंह कृषि उपज मंडी स्थित क्रय विक्रय सहकारी समिति खरीद केंद्र पर समर्थन मूल्य अधिक होने के बावजूद किसान मंडी में व्यापारियों को कम भाव में भी बेच रहे हैं। मंडी में चने व सरसों की 95 हजार बोरी माल बेच चुके हैं। चना का भाव किसानों को प्राइवेट व्यापारि 350 रुपए प्रति क्विंटल कम दे रहे है। वही सरसों का भाव भी किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से 150 रुपए कम मिल रहा है। प्रति एकड़ की उपज में हजारों रुपए का नुकसान होने के बावजूद भी किसान अपनी फसल प्राइवेट बेच रहे है।
रजिस्ट्रेशन करवाने पर भी नहीं बेच रहे सरकारी
दरअसल खरीद केंद्र पर 31 रजिस्ट्रेशन करवाए गए थे। जिसमें 22 किसानों ने चना व 9 किसानों ने सरसों बेचने के लिए पंजीयन करवाया था। इसमें से 11 किसान ही उपज लेकर आए। केंद्र पर 10 किसानों ने 201.50 क्विंटल चने की तुलाई करवाई और एक किसान ने 16 क्विंटल सरसों की तुलाई करवाई। समर्थन मूल्य सरकार चने के 5650 और सरसों को 5950 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीद रही है। बाजार की बात करें तो गुरुवार को सरसों के भाव 5800 रुपए से 6100 रुपए प्रति क्विंटल के बीच रहे। चने के भाव 5000 से लेकर 5300 रुपए प्रति क्विंटल के बीच रहे।
समर्थन मूल्य पर बिकी इतनी बोरी
समर्थन मूल्य पर बिकने वाले सरसों व चने की मंडी में अप्रैल व मई में 95 हजार बोरी की नीलामी हुई है। मंडी में अप्रैल में रायड़ा की 24 हजार 878 बोरी की आवक हुई थी। जबकि मई में 6374 बोरी आई। चने की बात करें तो अप्रैल में 45 हजार 850 बोरी की नीलामी हुई वहीं मई में 17 हजार 836 बोरी किसान उपज लेकर पहुंचे। भुगतान 7 से 10 दिन बाद मिलता है। पंजीयन से लेकर भुगतान तक सरकारी प्रक्रिया जटिल है। उपज केन्द्र पर लाते हैं तो क्वालिटी की जांच होती है, छनाई भी होती है।
व्यपारि करते है नगद भुगतान
हल्का माल होने पर रिजेक्ट हो जाता है। मार्केट में दोे रुपए कम भाव में हाथो हाथ माल बिक जाता है। रेट में ज्यादा फर्क नहीं होने, बेचे हुए माल का भुगतान 7 से 10 दिन बाद खाते में आने के कारण समर्थन मूल्य पर उपज बेचने में रूचि नहीं लेते हैं। किसान जब उपज लेकर मंडी आता हैं तो उपज का पैसा नकद चाहिए होता हैं ताकि वह देनदारों, मजदूरों सहित घरेलू जरूरत का सामान बाजार से खरीदे तब नकद भुगतान कर सके।