Chandan Ki Kheti: इस राज्य के किसान चंदन की खेती से होंगे मालामाल, वन विभाग की नर्सरी में फ्री मिलेंगे पौधे
THE CHOPAL (नई दिल्ली) - भारत की तर्ज पर कुदरती तौर से चंदन की पैदावार के लिए अनुकूल कांगड़ा जिले के इलाके देहरा, ज्वालामुखी, डाडासीबा, खुंडियां और नगरोटा सूरियां वन रेंजों के हर घर में अब चंदन लहलहाएगा। आप को बता दे की वन विभाग ने देहरा ने इसके लिए न सिर्फ चंदन के 15,000 पौधों की नर्सरी तैयार की है, बल्कि तस्करों से इसकी सुरक्षा के लिए पायलट प्रोजेक्ट को अंतिम रूप देकर प्रदेश सरकार की अनुमति के लिए भी भेज दिया है। विभाग अपने स्तर पर नर्सरी में तैयार किए गए चंदन के पौधों को लोगों में बांटेगा। विभाग लोगों को अपने स्तर पर इन पौधों की सुरक्षा और ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के लिए प्रेरित भी करेगा।
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इस नर्सरी में 100 में से सिर्फ -
सूत्रों के अनुसार शुरुआत में इस नर्सरी में 100 में से सिर्फ 10 पौधे ही सर्वाइव कर सके। लेकिन विभाग ने हार नहीं मानी। इसके बाद दक्षिण भारत के चंदन विशेषज्ञों से सहायता लेने के बाद नर्सरी से चंदन की सर्वाईव रेट काफी बढ़ गया। बहुत जल्द विभाग और भी बड़े पैमाने पर काम करेगा।वन विभाग चाहता है कि प्रकृति के इस नायाब तोहफे का लोग अपनी आर्थिकी सुधारने के लिए दोहन करें। लोग अपने घरों में चंदन के पेड़ उगाकर इसका महत्व और तस्करों के हाथों लुट रही इस वन्य संपदा का संरक्षण कर सकें। चंदन की खेती के लिहाज से अनुकूल इस बेल्ट में हालांकि चंदन के हजारों पेड़ सरकारी वनों व लोगों की निजी भूमि में पल रहे हैं। लेकिन विभाग पहली बार चंदन के पौधों को नर्सरी में उगाकर एक बड़े मिशन को अंजाम देने में जुटा है। इसकी कामयाबी के लिए दक्षिण के वनस्पति विशेषज्ञों की राय भी ली जा रही है।
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क्षेत्र के चंदन पर रही है पुष्पा की नजर -
शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी अब तक चंदन तस्करी का सबसे बड़ा गढ़ रहा है। यहां कालीधार के जंगल में लहलहाने वाले चंदन के हजारों पेड़ अब न के बराबर बचे हैं। माफिया ने बेशकीमती लकड़ी से पैसे की खातिर सैकड़ों पेड़ों को ढंग से पलने ही नहीं दिया। एक के बाद एक चंदन के पेड़ों को रात के अंधेरे में काटकर यहां से गायब कर दिया गया।सबसे पहले 1983 में वन भूमि पर कालीधार व आसपास के इलाके में 26 चंदन के पेड़ दर्ज किए गए थे। 1986 में यह बढ़कर 65 हुए। 1984 में 184,1996 में 272 जबकि 2006 तक इनकी संख्या 9000 के करीब पहुंच गई। इसके अलावा निजी भूमि पर भी चंदन के हजारों पेड़ थे। वर्तमान में विभाग के पास पेड़ों की ताजा गिनती के आंकड़े नहीं हैं, लेकिन बहुत जल्द इस पर काम शुरू होने की उम्मीद है।
1942 में ज्वालामुखी में उगाया गया पहला चंदन का पेड़ -
ज्वालामुखी में 1942 में चंदन का पहला पेड़ उगाया गया था। स्थानीय निवासी स्वर्गीय मेजर सोहन लाल इसे बेंगलुरु से लाए थे। इसके बाद साथ लगते कालीधार के जंगल में चंदन की संख्या बढ़ती गई। जल शक्ति विभााग से सेवानिवृत्त सहायक अभियंता जितेंद्रपाल दत्ता ने बताया कि इस इलाके में चंदन के पेड़ों की उत्पत्ति पक्षियों की बीठ से बढ़ती गई। कांगड़ा से लेकर बिलासपुर, घुमारवीं तक उपयुक्त तापमान के बीच चंदन बढ़ता गया है। कहा जा सकता है कि हिमाचल में चंदन ज्वालामुखी से फैला है।
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माफिया पर लगाम बड़ी चुनौती -
यहां चंदन के पेड़ाें को तस्करों से बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है। क्षेत्र में चंदन के पेड़ों पर माफिया की नजर 2006 में पड़ी थी। इस साल पहली बार चंदन के पेड़ कटने की शिकायत दर्ज की गई थी। 2006 से 2009 के बीच तीन सालों में वन से चंदन कटने के नौ मामले सामने आए। 2009 से 2021 तक 60 के करीब शिकायतें निजी भूमि से चंदन कटने की हुईं, जिनमें कई मामलों में तस्कर पकड़े भी गए। जबकि कई पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाए। ताजा मामलों पर नजर दौड़ाएं तो 2018 से 2021 तक तीन सालों में नौ मामले ज्वालामुखी पुलिस ने चंदन तस्करी के दर्ज किए थे। दर्जनों मामले न्यायालयों में चल रहे हैं।
5 से 30 हजार रुपये प्रतिकिलो है कीमत -
चंदन की लकड़ी की कीमत 25 से 30 हजार रुपये प्रति किलो है। एक पेड़ से ही बाजार में बेचने योग्य होने पर 20 से 25 किलो लकड़ी निकल जाती है। इस तरह एक बड़ा पेड़ कम से कम 4 से 6 लाख रुपये दे देता है। 20 से 25 साल में चंदन का एक पेड़ पूरी तरह तैयार हो जाता है।
क्या कहते हैं डीएफओ -
डीएफओ देहरा सन्नी वर्मा का कहना है पूरे प्रदेश में इसी क्षेत्र में चंदन उग रहा है। इसे प्रकृति का उपहार ही कह सकते हैं। क्षेत्र में इससे पहले पक्षियों की बीठ से ही अंकुरित हुए चंदन के हजारों पौधे आज पेड़ बन चुके हैं। विभाग ने पहली बार नर्सरी में चंदन उगाया है। इसमें मुश्किलें आई हैं, लेकिन हम सफल हुए हैं। इसकी प्रोटेक्शन तथा अन्य विषयों के लिए पायलट प्रोजेक्ट सरकार के पास भेजा है।
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