स्टेशन पर खड़ी ट्रेन को चलाने के लिए हरे की जगह क्यों दिया जाता है पीला सिग्नल?

The Chopal. ट्रेनों को सही चलाने के लिए पटरियों पर लगे सिग्नल और संकेत की मुख्य भूमिका होती है. ड्राइवर को गाड़ी को कब आगे चलानी है और कब रोकनी है, यह सिग्नल ही बताता है. हरा सिग्नल यह संकेत देता है कि गाड़ी को आगे लेकर जाना है, वहीं लाल सिग्नल होने पर ट्रेन को तुरंत रोकना पड़ता है. परंतु, ऐसा भी नहीं है कि ट्रेन हरा सिग्नल होने पर ही आगे चलती है. गाड़ी को चलाने के लिए कई बार येलो सिग्नल मिलता है. यह सिग्नल मिलते ही लोको पायलट ट्रेन को धीरे-धीरे आगे आगे ले जानी होती है.
पीला सिग्नल, रेलवे स्टेशन पर खड़ी गाड़ी को स्टार्ट करके आगे मेन लाइन की ओर ले जाना होता है. इसे प्लेटफॉर्म पर पीछे से आ रही दूसरी गाड़ी को जगह देने के लिए दिखाया जाता है. यह सिग्नल तब मिलता है, जब गाड़ी रेलवे स्टेशन पर लूप लाइन में होती है. लूप लाइन पर लगे सिग्नल को स्टाटर सिग्नल कहते हैं. लूप लाइन पर खड़ी गाड़ी को जब येलो सिग्नल दिखाया जाता है तो यह इस बात का संकेत होता है कि लोको पायलट अब गाड़ी को स्टार्ट करके धीरे-धीरे आगे बढ़ सकता है.
नहीं होता ग्रीन सिग्नल
लूप लाइन के सिग्नल में केवल रेड और येलो लाइट का होता है. येलो सिग्नल मिलने पर गाड़ी आगे बढ़ने लगती है, लेकिन इसकी रफ्तार लूप लाइन पर 30 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक नहीं होती. ऐसा इसलिए होता है इस लाइन की यह स्पीड लिमिट होती है. लूप लाइन से ही गाड़ी मेन लाइन पर जाती है. वहां पर भी एक स्टार्टर सिग्नल मिलता है, जिसे एडवांस सिग्नल कहा जाता हैं. एडवांस सिग्नल ग्रीन मिलते ही लोको पायलट मेन लाइन पर गाड़ी को पूरी स्पीड से दौड़ा सकता है.
सिग्नल के सहारे ही चलती है ट्रेन
ट्रेनों का संचालन ट्रैक पर लगे सिग्नल के बिना असंभव है. लाल, हरा और पीला सिग्नल एक तरह से रेलवे की आंख होते हैं. लोको पायलट सिग्नल देखकर ही गाड़ी चलाने और रोकने का निर्णय लेता है. अब तो रेलवे में ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली आ गई है. रेलवे की पटरियों के बगल में लगाए गए एक्सल काउंटर बॉक्स भी ट्रेन के डिब्बे पीछे छूटने पर अपने आप रेड सिग्नल देता है.
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