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अरहर की पैदावार में होगा इजाफा, एक्सपर्ट द्वारा बताए इस तरीके से करें खेती

Piegon Pea Farmin : भारत में बड़े स्तर पर खेती-बाड़ी का कार्य किया जाता है। देश में नरमा,कपास, सरसों और गेहूं अलावा कई तिलहन और दलहनी फसलों की खेती की जाती है। अगर खेती-बाड़ी की सही जानकारी हो तो यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित होती है। अगर किसान भाई दलहनी फसल की पैदावार को बढ़ाना चाहते हैं तो तकनीक का प्रयोग करना अति आवश्यक है। 

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अरहर की पैदावार में होगा इजाफा, एक्सपर्ट द्वारा बताए इस तरीके से करें खेती

Agriculture News : भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की बहुत बड़ी आबादी कृषि और और पशुपालन निर्भर है। आज समय के साथ खेती करने के तरीके भी बदल चुके हैं। किसान दलहनी फसल के पैदावार को बढ़ाने के लिए अब नई तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं। अरहर देश की प्रमुख दलहनी फसलों में शामिल है। अरहर की दाल सेहत के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। इस फसल की बुवाई खरीफ मौसम में की जाती है। अरहर की फसल सूचक इलाकों में ज्यादा बोई जाती है।

FIR विधि से अरहर की खेती

इसकी बुआई अक्सर शुष्क स्थानों पर की जाती है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती हो सकती है। अरहर दाल में बहुत अधिक प्रोटीन होता है। इसलिए इसकी मांग काफी है। FIR विधि से अरहर की खेती करने से किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि FIR विधि क्या है और किसान इससे लाभ कैसे कमा सकते हैं।

नवीनतम तकनीक का उपयोग करना आवश्यक

दलहनी फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग करना आवश्यक है। गंधार कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञ मनोज कुमार ने बताया कि किसानों को बीज बुआई से पहले उपचार की सलाह दी जाती है। अरहर फसल लगाने से पहले किसानों को फफुंदनाशी नामक दवा से उपचार करना होगा। कार्बेंडाजिम (carbendazim) को फफुंदनाशी दवा के रूप में 50% WP 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से लेना चाहिए।

इस तरह करें प्रयोग 

कृषि एक्सपर्ट ने बताया कि सबसे पहले एक पक्के फर्श पर प्लास्टिक बिछाकर 3 इंच मोटे बीज छाया में डालें। उसके ऊपर पानी डालना चाहिए। 10 किलो अरहर बीज पर 20 ग्राम कार्बेंडाजिम (50% WP) डालें। यदि वीटा वैक्स बिजली का उपयोग करते हैं तो चालीस ग्राम देना होगा। दवाओं को छिड़कने के बाद बीज में अच्छे से मिलाएं। मिला लें, फिर छाया में रखें। 24 घंटे के लिए इसके ऊपर जूट का बोरा डाल देना चाहिए।

अरहर की खेती में दीमक लगने का खतरा 

दो दिन बाद, पूरा बीज फिर से पक्के फर्श पर 3 इंच मोटा करके फैलाएं। फैलाने के बाद इसमें कीटनाशक दवा दी जाती है। क्लोरोपायरीफॉस, एक दवा का नाम है, इसके लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। दीमक का प्रभाव कम करना इसका लक्ष्य है। अरहर की खेती ऊंची जगहों पर होती है, इसलिए लोगों को दीमक लगने का अधिक डर होता है। 2 एमएल प्रति किलो बीज की दर से इस दवा दी जानी चाहिए। बीजोपचार में 25 प्रतिशत वाली दवा 3 मिलीग्राम प्रति किलो ले जाएँ।  इस दवा को उस बीज में छिड़क दें जो जो 3 इंच मोटा पक्के फर्श पर बिछा रखे हैं. इसके बाद सबको अच्छे से मिला दें. मिलाने के बाद दोबारा से इस बीज को ढ़ककर रखना होता है. यह क्रियाकलाप छाया में होगा.

एक्सपर्ट कहते हैं कि राइजोबियम कल्चर जीवाणु है। इस जीवाणु का काम है कि वह वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन को खींचकर फसलों और मिट्टी तक पहुंचाना हैं। इसके लिए राइजोबियम कल्चर आवश्यक है। एक एकड़ में 250 एमएल राइजोबियम कल्चर चाहिए। 400 ग्राम गुड़ या चीनी चाहिए। 400 एमएल या 500 एमएल पानी की जरूरत पड़ेगी। गुड़ यानी रवा में 250 मिलीग्राम राइजोबियम कल्चर मिलाना चाहिए। 3 इंच मोटा फफुंदनाशी और कीटनाशी युक्त बीज पर 250 एमएल राइजोबियम कल्चर छिड़कें। इसके बाद उसे अच्छे से मिलाएंगे।

मिट्टी उपजाऊ होती है

मनोज कुमार बताते हैं कि इसके बाद आप देखेंगे कि जितना बीज लसलसा हो गया है। जब आप सूखी वर्मी कंपोस्ट को इसमें मिलाएंगे, तो यह सूख जाएगा। अब इस बीज को मिट्टी में मिलाएं। ऐसा करने से खेत की पैदावार 25 से 30 प्रतिशत बढ़ जाएगी। साथ ही स्वास्थ्यप्रद भोजन भी मिलेगा। मिट्टी उपजाऊ हो जाती है।