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गेहूं की इस किस्म में नहीं आते रोग, 145 दिन की खेती में 64 क्विंटल उत्पादन

Wheat New Variety :खरीफ सीजन की फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए किसानों को सबसे पहले उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना बेहद जरूरी है। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने गेहूं की 2 नई किस्म तैयार की है। यह प्रजाति 145 दिन की अवधि में पककर 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन दे सकती है। इसमें पती धब्बा रोग और पीला धब्बा रोग आने की संभावना बहुत कम रहती है।

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गेहूं की इस किस्म में नहीं आते रोग, 145 दिन की खेती में 64 क्विंटल उत्पादन

Wheat Variety : देश में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके लिए किसान आगे आने वाले रबी सीजन में गेहूं की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं। किसानो को गेहूं की बिजाई करने से पहले उन्नत किस्म के बीज का चयन करना बेहद जरूरी है। इसके तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने किसानों के लिए गेहूं की उन्नत किस्म तैयार की है। यह वैरायटी गेहूं के पत्ती धब्बा रोग तथा पीला धब्बा रोग से लड़ने में सक्षम है। जिस वजह से इसकी उपज अधिक होती है और रोगों कीटों की रोकथाम पर खर्च होने वाली लागत बच जाती है।

कृषि वैज्ञानिको ने गेहूं की उन्नत किस्म Pusa Wheat 3386 और HD 3386 पेश की है। गेहूं की HD 3386 किस्म   145 दिन की अवधि में तैयार होकर 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने उत्तर प्रदेश पंजाब सहित कई राज्यों के किसानों को रबी सीजन में इस किस्म की बिजाई करने की सलाह दी है।

रोग प्रतिरोधी होने की वजह से उत्पादन ज्यादा

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने हाल ही में अधिक उपज देने वाली नई गेहूं बीज किस्म HD 3386 पेश की है। रबी सीजन के लिए सिंचित और समय पर बोई गई स्थितियों के लिए यह पूसा गेहूं 3386 (Pusa Wheat 3386) किस्म सही है। यह गेहूं में लगने वाले रोग लीफ रस्ट और येलो रस्ट को पनपने नहीं देती है और खुद ही उसे खत्म करने की क्षमता रखती है। इन दोनों रोगों में गेहूं की पत्ती और तने में धब्बा रोग लग जाता है, जो पौधे का विकास रोक देता है। इससे उपज प्रभावित होती है। यह नई किस्म इन दोनों रोगों को पनपने नहीं देती है।

8 राज्यों में बोई जा सकती है

IARI दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने पूसा गेहूं 3386 किस्म को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान , पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों ऊना जिला और पांवटा घाटी और उत्तराखंड तराई क्षेत्र में बुवाई के लिए उपयुक्त बताया है। जबकि, राजस्थान के कोटा और उदयपुर डिवीजन में  और यूपी में झांसी डिवीजन के साथ ही जम्मू के कठुआ जिले में इसकी बुवाई के लिए सलाह नहीं दी गई है।

145 दिन में पककर 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार पूसा गेहूं 3386 Pusa Wheat 3386 किस्म 145 दिन में तैयार हो जाती है। इसमें आयरन 41.1 पीपीएम और जिंक 41.8 पीपीएम मात्रा भरपूर होती है. एक हेक्टेयर में उत्पादन की बात करें तो पूसा गेहूं 3386 Pusa Wheat 3386 किस्म 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से इस रबी सीजन में इसी किस्म की निर्धारित क्षेत्रों में बुवाई करने की सलाह दी है।

पुरानी प्रजाति का स्थान लेगी 3386 नई किस्म 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के अनुसार पूसा गेहूं 3386 Pusa Wheat 3386 किस्म एचडी 2967 Pusa Wheat 2967 किस्म की जगह ली है.  Pusa Wheat 2967 किस्म को  2010 में IARI ने ही विकसित किया था।  इस किस्म को पिछले सीजन में देश में 340 लाख हेक्टेयर के कुल बोए गए गेहूं क्षेत्र के लगभग 25 फीसदी एरिया में बोया गया था।  Wheat 2967 किस्म की उज 22 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि नई किस्म पूसा गेहूं 3386 की उपज 25 क्विंटल प्रति एकड़ है।